प्रथम प्यार

पहला प्यार

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 26 Mar, 2022 | 0 mins read

प्यार कहूँ या आकर्षण,

खींच जाता है मेरा मन,

न कोई आस न उम्मीद,

फिर बन गया है धड़कन।


सिमटी रही थी सदा स्वयं में,

बंद रखें थे दिल के दरवाजे,

बड़ा ही गुरुर था स्वयं पर,

नही खोल सके कोई दिल के ताले।


पर यूँही जब बातों का सिलसिला चला,

दिल से दिल को जैसे राह हो मिला,

बेख़याली में भी अक्सर ही ख़्याल तेरा,

खुद से नही रहा कोई शिकवा गिला।


प्यार की ये कशिश थी,

दिल की ये लगती बड़ी आजमाइश थी,

सोचों का सिलसिला तुम तक ही सिमटा,

तुझसे ही ताउम्र रहे मुहब्बत यही गुजारिश थी।


प्रथम प्यार का ये अनोखा सा एहसास,

मुझको बना रखा था जिसने बड़ा खास,

अब तो सारे शृंगार तुम्हारे लिए थे,

दूर होकर भी थे मेरे दिल के पास।


जिंदगी से मुझको मुहब्बत हो गई,

बन गयी खूबसूरत जिंदगी, नही लगती कमी,

हर दुख तकलीफ मानो गायब हुए,

हौसलों के पंख पसारकर मैं सदा उड चली।


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