मौन

मौन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 27 Nov, 2021 | 0 mins read

जुबा बंद एकांतवास कर रही थी मैं अकेली,

खुद से ही बात कर सुलझा रही जीवन पहेली,

नही समझ आ रहा था दुनियावी चाल मुझको,

उलझनों से उबारने को नही दिखती सहेली।


व्यथा मेरे मन की तीव्र से तीव्रतर हो रही थी,

झूठे वादों में यकीन कर ख़ुशियाँ खो रही थी,

रिश्ते भी सगे से होकर सगे नही लग रहे थे,

पीर मन में अपेक्षाओं का गहरा बो रही थी।


नियति पर भरोसा छलावा मुझको लग रहा था,

ईश्वर पर आस्था का बोझ मनों दब रहा था,

शांत एकांत मौन मेरी पीर को बढ़ा रही थी,

चोट भीतर भीतर दिल में मेरे बढ़ रहा था।


मौन बैठे सोच रही थी अपने होने का प्रयोजन,

क्यों नही कर पा रही थी मैं सदा समायोजन,

मौन से बातें करते हुए अपनी क्षमता को जाना,

पूरी करनी थी मुझे अब सारी योजन।

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Ruchika Rai

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