काश कि मेरे पास टाइम मशीन होती,
ले जाती उसे उम्र में जहाँ थी मैं खुश,
एक स्वस्थ इंसान के रूप में वजूद था।
हर तरफ मेरे लिए अच्छी अच्छी बातें थी,
हर कोई मुझसे बड़ा खुश था।
हर वो काम मेरी आदतों में शामिल था,
जिसे एक माँ बाप अपने बच्चे से चाहते।
उफ्फ ये किस्मत ने क्या पलटी खाई
मेरी किस्मत ही बदल गयी।
संघर्षरत जीवन रहा मेरा पर सबके हिस्से
मेरे साथ साथ संघर्ष है भर गयीं।
माँ बाप को आराम करने की उम्र में,
अस्पतालों के चक्कर है लगाना पड़ा।
बनाकर दो रोटी खिलाना था मुझको,
उन्हें ही मुझे खिलाना पड़ रहा।
जब कभी यह सोचती हूँ दर्द हावी होता है,
चाह कर भी इस मर्ज का इलाज नही मिलता है।
आज भी मेरे नाम को सभी अच्छे रूप में ही जानते,
पर क्या है कि नजरिया उनका अलग ये हम हैं पहचानते।
काश की मेरे पास टाइम मशीन होती,
छोड़ देते इस पल को
लौट जाते पीछे की ओर
जहाँ मेरे से जाने अनजाने किसी को कोई दर्द नही था।
सब खुश थे
उनकी बिटिया बहुत प्यारी है।
वह एक दिन नाम जरूर करेगी।
Comments
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माफ़ कीजियेगा लेकिन आपकी लिखी कविता को पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि इस कविता में लिंग भेद है मतलब कि टाइम मशीन होती, न कि होता...और क़िस्मत ने क्या पलटी खाई न कि पलटी खाया बाक़ी आपकी रचना कि कल्पना बेहतर है😊 शुभकामनाएं आपको
जी बहुत बहुत शुक्रिया, एडिटिंग ऑप्शन नही समझ आ रहा,वरना सुधार कर। देती।
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