जब दर्द आँसू बनकर निकलने को
आतुर हुए,
मैंने शब्दों में ढाल दिया उसको
और हो गयी एक कविता तैयार
फिर सबने कहा वाह क्या खूब।
जब मन का शोर अस्थिर करता मुझे
बेचैनियां हावी होकर उलझा लगती
सुलझाने का कोई सिरा हाथ नही आता
तब शोर शब्द बनकर पन्नों पर उतरने
लगते धीरे धीरे
और होने लगती एक कविता तैयार।
और फिर सब उसको अपना ही मानने लगते।
जब खुशी के क्षण मुझपर हावी होते,
उमंग और उल्लास मन को आह्लादित करते,
शब्द खुशी बनकर उल्लसित होते,
और संगीत बनकर होंठों पर उतरते,
और अनायास ही होती एक कविता तैयार,
और सब कहते ये हुई न बात।
जब प्रेम में आकंठ डूब जाता है मन,
जो नफ़रतों के अग्नि में जलता तन बदन,
जब ईर्ष्या और द्वेष हावी होते,
और मध्दम पड़ने लगता जिजीविषा,
मगर पोर पोर मिलन को होते आतुर,
तब शब्द के रूप में सँवर कर बन जाती कविता।
कविता देश काल परिस्थिति से है उपजती,
कभी रसोई के बर्तनों के बीच
कभी मसालों की खुशबू में है आती,
कभी खेत खलिहानों में लिखी जाती
कभी वनों उपवनों में सुरभित होती,
और कभी हमारे और आपके दिल में मुखरित होती।
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