प्रकृति

एक छोटी सी कोशिश सोए हुओं को जगाने की।

Originally published in hi
❤️ 1
💬 1
👁 465
Romie
Romie 07 Sep, 2023 | 0 mins read

अनंत नाद बज उठा,

घना अंधेर सज चुका।

गगन ने की शिकायतें,

के रक्त तेरा जम चुका।।

प्रचंड आंधियाँ उठी,

ज्वाला मशाल जल चुकी।

ना चेतना जगी अभी,

विनाश की सभा बिठी।।

धरती सवाल कर रही,

हर आकृति बदल रही।

नजर उठा के देख लो,

प्रकृति पे क्या गुज़र रही।।

ये कैसा अल्पज्ञान है,

विध्वंस अब विकास है।

संभल संभल कदम बढ़ा,

हर भूल अब विशाल है।।

नदी की धार मंद है,

समंदरों में गंद है।

खिसक रहे शिखर कहीं,

धरणी में भी स्पंद है।।

सूखी नदी ना वन बचे,

सबको यहां बस धन जंचे।

हर सांस दूषित अब यहां,

इस हाल में आगे भी कुछ अच्छा मुमकिन कहां।।

जिनका शुरू जीवन हुआ,

उनके लिए तो बक्श दो।

जीवन में दस बारह नही,

बस एक ही तुम वृक्ष दो।।



1 likes

Support Romie

Please login to support the author.

Published By

Romie

romie

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.