इस कहानी में वैसे तो कुछ खास नहीं है, मगर ये कहानी बहुत खास है। ये कहानी महज दो किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। ये कहानी है मेरी और उस शख़्स की जो अभी मेरी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है। ये कहानी है मेरी और तुम्हारी। हम पहली दफ़ा क्लास नवी में मिले या यूँ कहें कि सिर्फ हमने एक दूसरे को देखा ही होगा। एक दूसरे से बात करना तो दूर हम कभी ठीक से मुखातिब भी न हुए थे। क्लास 10th तक तो वैसे भी हमारे क्लास रूम्स अलाहिदा ही थे। पर जैसे जैसे वक़्त गुज़रा इत्तेफ़ाक से हमने एक ही सब्जेक्ट लिया और हमारे क्लास रूम एक हो गए। मुझे आज भी याद है तुम दूसरी लाइन की दूसरी सीट पर और मैं तीसरी लाइन की पहली सीट पर बैठा करती थी। तब तक भी हमारी कोई खास बात नहीं हुई थी। न हमने कोशिश की या यूँ कहें कि कभी हिम्मत ही न हुई कि जाकर दोस्ती की जाए। बस अंजान से चेहरों से कभी कभार एक दूसरे को देख लिया करते थे।
वैसे हम दोनों ही बहुत हद तक एक जैसे थे बिल्कुल शांत स्वभाव आसपास क्या हो रहा है उससे मतलब नहीं बस अपने में मगन। कई दफ़ा मैं तुम्हारी तरफ देखती और सोचती कि इतना शोर है हर जगह ये कैसा किरदार है जो ख़ामोशी पसंद है। कितना सरल कितना सहज कितना शांत, काश ये मेरा भाई होता। न कभी टीचर्स का मज़ाक उड़ाना न कभी क्लास बंक करना न कभी किताबें न लाने की वजह से क्लास से बाहर जाना न किसी को परेशान करना लगभग सारी ही आदतें हमारी एक जैसी थी। या यूँ कहें कि ये हमारा किरदार बस दिखाने भर का था, असल में तो हम कुछ और ही थे।
वक़्त गुज़रा और हम क्लास 12th में आये। बचपना तो सारा जा ही चुका था। बस हर जगह बोर्ड्स में अच्छे अंक लाने की होड़ मची हुई थी, और इसी वजह से स्कूल जाना न के बराबर था। शायद तभी हमारी बात हुई थी पहली दफ़ा। जब अच्छे मार्क्स लाने के लिए मजबूरी में अखिलेश सर की प्रैक्टिकल क्लास लेनी पड़ती थी। क्योंकि उनका कहना था कि अगर प्रैक्टिकल नहीं किया तो नंबर भी नहीं। बस यही डर काफ़ी था। बस वो थोड़ी सी बात और धुँधली सी याद ही रह गई और हमारे फाइनल परीक्षा हो गईं। सब वहीं खत्म ऐसा ही सोचा था क्योंकि में उस वक़्त बहुत अलग थी किसी से दोस्ती इतनी आसानी से नहीं करती थी। फिर एक दिन तू मुझे फेसबुक पर दिखा और वहीं से हमारी कुछ बातें शुरू हुई। बातें ढेर सारी बातें और स्कूल की यादें। और तभी से तूने मेरा नाम खाँन साहब रखा जो आज तक तू मुझे उसी नाम से बुलाता है। बस यूँ ही वक़्त गुज़रता चला गया।
रिजल्ट आया फ़िर अच्छे कॉलेज में जाने की होड़ में कई दोस्त एक दूसरे से अलग हो गए तो कई हमेशा के लिए साथ। और दूसरी तरफ मैं सबसे अलग किसी कॉलेज में एडमिशन लिए बैठी थी। बस इसी सोच में कि अब तो सब मुझसे दूर हो ही चुके हैं। मैं अकेली इन अंजान लोगों के बीच कैसे रह सकूँगी। कोई एक तो होता जो मेरे साथ होता, कोई जाना-पहचाना सा। यही सोच में थी कि तुम मुझे दिखे मेरे सामने से गुज़रे और जब मैंने तुम्हे देखा तो खुशी से उछलते हुए कहा क्या तूने भी यहीं एडमिशन लिया है मेरे साथ वाह! और तुम्हारा जबाव था हाँ! मैंने भी यहीं लिया है। और उस वक़्त मुझे एहसास हुआ कि क्या ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया क्या है मतलब इतनी भी क्या खुशी। मगर शायद उस वक्त मैं अनजान लोगों के बीच मिले एक जाने पहचाने से अजनबी को देखकर ख़ुद को रोक ना सकी बस यही सोचते हुए वहाँ से चली गई।
हमारी क्लासेस कभी साथ नहीं हुआ करती थीं। मगर यूँही चलते फिरते हमें एक दूजे का साथ मिल जाया करता था। ऐसे हमारी दोस्ती और भी गहरी होती गई। वक्त के साथ-साथ हम एक दूसरे को समझने लगे। और हाँ कितनी ही बार मैंने तुम्हारी प्रैक्टिकल फाइल्स बनाकर दी है। इसे सच्ची दोस्ती ही कहेंगे। तू हमेशा वाद-विवाद में जीतने वाला लड़का और मैं बस चुपचाप अकेले बैठने वाली लड़की।
फिर कॉलेज खत्म मिलना खत्म। फिर एक नई जिंदगी। मगर इस बार हम साथ थे साथ न होते हुए भी। रोज़ व्हाट्सएप पर बाते करना अपनी सारी बातें बताना यूँ ही सब चलता रहा। धीरे धीरे दोस्ती और गहरी होती चली गई। हम एक दूसरे को अपने दुःख तक़लीफ़ सब बताने लगे। इस आस में कि हमें कोई तो समझने वाला है।हम वो सारे गहरे राज़ एक दूसरे को बताते जो हम किसी को बताना नहीं चाहते थे। एक दूसरे की तकलीफ परेशानियां सुनते और एक दूसरे का सहारा बनते बस यही सही मायने में हमारी दोस्ती का मतलब था। एक दूसरे को ख़ुश देखना हमारा मक़सद बन गया। फिर एक वक़्त ऐसा भी आया जब बातें कम होने लगी हम दोनों अपनी अपनी ज़िंदगी में मशरूफ़ होते चले गए। और उस वक़्त कुछ ऐसी भी परेशानियां आईं जिनमें हम साथ नहीं थे। उस वक़्त हमें एक दूसरे का साथ जरूरी था। कुछ वक़्त बीतने के बाद जब सब थम सा गया।।
तो एक दिन मेरे पास एक अंजान से नंबर से फोन आया। खान साहब ईद मुबारक़ हो वो जानी पहचानी सी आवाज थी। मैंने कहा तुझे भी और उस पल बहुत ख़ुशी हुई कि किसी पुराने दोस्त का फोन है। जो बहुत करीब था मेरे। बस कुछ पल के लिए दूर हुए थे। बस कहने को, बाकी थे हम एक दूसरे के आस पास।
फिर वही दिन बातें, मुलाकातें, सुख-दुःख बयान करना कभी साथ हँसना कभी साथ रोना। एक दूसरे को तकलीफ़ में देख हमें दुख होना बस यही हमारी ज़िंदगी है। और कुछ पल ऐसे भी आए जब हमें सबसे जरूरी चीज़ एक-दूसरे का साथ लगने लगा उस वक़्त साथ रहना ज़रूरी सा हो गया था। तूने हमेशा मेरा साथ दिया हमेशा मुझे हँसाया, जीना सिखाया।
इस बीच एक वक़्त ऐसा भी आया जब लोग कहने लगे कि हम बस दोस्त नहीं हैं उससे ज्यादा कुछ हैं। तब तूने हमेशा मुझे एक ही बात समझायी हमारा रिश्ता है हम बेहतर जानते हैं लोगों का क्या है वो तो कहते रहेंगे तो ध्यान मत देना। हम क्या हैं हमें किसी के आगे बयान नहीं करना। हम साथ हैं तो और क्या चाहिए हमारी दोस्ती ऐसे ही बनी रहे। आज तक हर चीज़ में साथ दिया तूने मेरा बस एक शिकायत रह गई। कब तक ख़ामोशी से सब सहना है। कब तक महान बनना है। जानती हूँ मगर लोग तुम्हें दुःख दे जाते हैं और तुम कुछ नहीं कहते। हमारा दोस्ती का ये प्यारा सा और पाक रिश्ता यूं ही ताउम्र रहे। दोस्ती के असल मायने तुझसे सीखे हैं मैंने। बाकी मुझे तेरी दोस्ती के सिवा और कुछ नहीं चाहिए, चाहिए तो बस उम्र भर तेरा साथ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👀👀 khan sahab emotional kr diya yarr ❤️❤️❤️ kya kahu me to ese time kuch bol bhi nh pata itna special feel krwati h th hamesa mujhe Aur me kuch nhi krta tere liye sorry n thanku ❤️❤️❤️❤️❤️ me apni feelings words m n baya kr skta👀👀👀
😁😁😁mast 😁😁
Worth my Time 😍
Thnq guys ❤❤❤
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