ख़्वाब-ऐ-जिंदगी

ख़्वाब-ऐ-जिंदगी

Originally published in hi
Reactions 0
210
Ritu Chaudhary
Ritu Chaudhary 03 Jan, 2025 | 1 min read
poetry jindagi

़ऐ जिंदगी आ लिखुँ तुझे अपने हाथ से ,

चुरा के लफ्ज़ किसी गीत के, या शब्द किसी किसी किताब से 

ऐ जिंदगी आ लिखुँ तुझे अपने हाथ से !


यहाँ से दूर कहीं पहाड़ से बहता पानी है तू 

शहर में बैठा हर शख्स अनजान जिससे, उस झरने की कहानी है तू ,

शोर तो है तुझमे पर हर कोई सुन नहीं सकता

छोड़ कर शहर हर कोई पहाड़ चुन नहीं सकता,

कभी उछले कभी टकराये पर रुके नहीं किसी बात से 

ऐ जिंदगी आ लिखुँ तुझे अपने हाथ से !


कभी समंदर सी शांत तो कभी आंधी संग बरसात है तू 

दर्द किसी बिछड़े पंछी का तो कभी बगीचे की मुलाकात है तू ,

किसी चोटी से दिखने वाला सुंदर नज़ारा है 

तारो भरी रात में नदी का किनारा है ,

रवानी (तूफान) में फँसी किसी नाव का डर है तू 

कभी सहर(सुबह की नारंगी धुप ) में दिखता सुंदर घर है तू ,

ना खौफ तुझे नफरत का, ना बँधी है किसी जात से 

ऐ जिंदगी आ लिखुँ तुझे अपने हाथ से !


तू बन जाये मेरा देखा सुंदर ख़्वाब कोई 

हर दम लगे मुझे तू जैसे छूने पर गुलाब कोई, 

मैं हँसू तो दिल घबराए नहीं, वो सुकून अगले पल कहीं जाये नहीं 

बंधन कोई पंख मेरे चुराए नहीं, जो सुनना चाहूं तू गुनगुनाये वही 

तू मेरी याद वही पुरानी बन जा, वो बचपन वाली कहानी बन जा 

तोड़ दायरे सारे अपने मन की करूँ और तू रूठे नहीं किसी बात से,

ऐ जिंदगी आ लिखुँ तुझे अपने हाथ से 

ऐ जिंदगी आ लिखुँ तुझे अपने हाथ से !


0 likes

Published By

Ritu Chaudhary

rituchaudhary

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.