एक अनोखी प्रेम कहानी

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Ritika Bawa Chopra
Ritika Bawa Chopra 28 Jul, 2022 | 1 min read
poetry


कभी लाल, कभी पीली, कभी रंग-बिरंगी चूड़ियाँ पहनते- उतारते देखा था एक दुकान पर मैंने उसे,


चूड़ी टूटने पर काँच चुभा उसे तो दर्द महसूस हुआ था मुझे,


कुछ ऐसे ही पहली बार प्यार का एहसास हुआ था मुझे,


देखते ही उसे एक नज़र में कुछ यूँ ही बस इश्क हुआ था मुझे,


उसकी पायल की झनक कानों में कुछ रस सा जैसा घोल गई थी,


उसकी हँसी मेरे लबों पर भी एक मस्कुराहट छोड़ गई थी,


उसके इत्र की खुशबू मेरी साँसों में जैसे बस गई थी,


पहली बार में ही मुझे दीवाना सा वो कर गई थी,


फिर रोज़ उस दुकान के पास उसका इंतजार मैं करता,


आएगी फिर नज़र एक रोज़, ये मुराद मैं करता,


चाय के ठेलेे पर नाजाने कितनी प्याली चाय मैं पी जाया करता,


चाय वाला भी एक लम्बा बिल मेरे नाम रोज़ तैयार रखता,


मोहब्बत करने की क़ीमत तो चुकानी पडत़ी है ना यही सोच कर में खुश रहता,


बस अपनी किस्मत सवरने का इंतजार रोज़ मैं करता,


दिन बीते, फिर हफ़्ते, पर हिम्मत जवाब ना दे रही थी,


एक छोटी सी उम्मीद की चिंगारी बस मेरे मन में जल रही थी,


यूँ ही तो नहीं मन मचला होगा मेरा,


कुछ तो उससे रूह का रिश्ता होगा मेरा,


एक दिन मेरी ओर खिंची चली आएगी वो,


बस फिर अपने दिल का हाल बयाँ कर दूँगा उसको,


सोच ही रहा था कि उसकी हँसी की आवाज़ फिर से सुनाई दी मुझे,


इधर उधर देखा तो गोल गप्पे की दुकान पर सहेली संग वो दिखाई दी मुझे,


अब क्या करूँ कुछ सूझा ही नहीं मुझे, 


पास के मंदिर की घंटायाँ भी बजने लगी जैसी कोई इशारा दे रहीं हो मुझे,


जा बोल दे दिल की बात अभी, ये मौका दोबारा मिले ना मिले तुझे,


फिर क्या हुआ पता नहीं मुझे,


भाग कर गया और बस कह दिया उसे, क्या दोस्ती करोगी मुझसे,


उसने भी पलटकर देखा और कहा हाँ-हाँ क्यों नहीं, तुम्हारा ही तो इंतज़ार था मुझे,


मैं खुश होने ही वाला था कि अपनी जूती से मेरे पैर पर वार कर दिया उसने,


दर्द से जब कराह रहा था मैं उसने मेरी तरफ़ देखा और कहा ज़्यादा लगी तो नहीं तुम्हें,


क्या करूँ गुस्सा आ गया था मुझे,


भला यूँ भी कोई किसी से बात करता है अचानक आकर पीछे से,


मेरी उम्मीद फिर से जगी, तो हाथ बढ़ाकर फिर पूछ लिया, क्या दोस्ती करोगी मुझसे,


इस बार वो शर्माकर बोली सूरत से तो शरीफ़ लगते हो, भला ये सब करने की क्यों सूझी तुम्हे,


मैंने उसे अपने दिल का हाल सुनाया,


कैसे, कब, कहाँ पहली बार देखा था, ये बतलाया,


सुनकर धीमे से मुस्कुराई वो और बस बिना कुछ कहे ही चलदी वो,


कहते हैं जाने वाले को पीछे से आवाज़ नहीं दिया करते, तो मैंने भी रोका नहीं उसको,


फिर पलटकर देखा उसने और बोली कल मंदिर में मिलने आना मुझे,


मैं निशब्द बस देखता ही रहा उसे,


सुबह का इंतजार जैसे खत्म ही नहीं हो रहा था,


उस लंबी रात का अंत जैसे हो ही नहीं रहा था,


जाने कब सुबह होगी और मिलूँगा उससे, यही सोचकर रात गुज़ारी थी,


उसके ख्यालों में ही पूरी रात जाग कर मैंने बिताई थी,


सुबह हुई तो तेज़ बारिश हो रही थी,


उसके मिलने आने की आस कुछ कम सी हो रही थी,


पर मेरा मन न माना, तैयार हुआ और छाता लेकर बस चल दिया,


वो आएगी या नहीं यही सोचते हुए रास्ता जाने कैसे गुज़र गया,


वहाँ पहुँचा तो देखा एक छोटी सी बच्ची के साथ छाता लिए पेड़ के नीचे वो बैठी थी,


उसे देख फिर मेरे दिल में कुछ हलचल सी हुई थी,


पास गया और पूछा कब से बैठी हो यहाँ,


उसने कहा रात भर सोई ही नहीं तो सुबह जल्दी ही आ गई थी मैं यहाँ,


कितना अजीब सा था ये सब,


दोनों का हाल जैसा एक सा था अब,


उस बच्ची के बारे में जब पूछा मैंने,


तो कहा उसने यह मेरी बेटी है, मेरा नाम खुशी है और इसका मुस्कान,


मैंने सोचा ये कैसा है मेरे प्यार का इम्तेहान,


उसनेे फिर बताया की इसके पिता छोड़ कर चले गए थे जब पता चला की लड़की हुई है,


अब मैं ही इसकी माँ और पिता हूँ और यही मेरी सब कुछ है,


मेरे पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन ही खिसक गई थी,


सोच में पड़ गया था कि कैसे हो जाता है कोई इतना निर्दयी,


मैंने उसके परिवार के बारे में पूछा तो उसने कहा हम दोनों ही हैं एक दूसरे के लिए अब,


कुछ दोस्त हैं जो बुरे वक्त में साथ देते हैं अब,


उसके अकेलेपन की टीस अब मेरे दिल में चुभ रही थी,


उसे अपनाने की चाहत अब और ज़्यादा बढ़ रही थी,


आखिर मैं भी तो अकेला ही था,


लगता है अब मेरा भी परिवार होगा यही सोच रहा था,


उसने पूछा तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है,


मैंने बस कहा अगर तुम हाँ करदो तो तीन लोग वरना मैं अकेला ही हूँ,


उसकी आँखें भर आई जैसे कहने को कुछ बाकी ही ना हो,


दोनों का हाथ पकड़कर बस मंदिर की ओर चल दिया मैं तो,


तभी मेरा हाथ रोक दिया उसने,


ज़रा सोच तो लो एक बार फिर कहा उसने,


सोचकर नहीं होता सच्चा प्यार,


जान गया था मैं देखते ही तुम्हें पहली बार,


कुछ तो नाता है अपना पिछले जन्म का करलो मेरा ऐतबार,


मिलकर साथ रहेंगे हम एक परिवार की तरह अब,


होगा खूबसूरत अपना भी जहान अब,


नाम है मेरा जीवन जिसमें तुम खुशी और यह बच्ची मुस्कान बनकर आई है,


बरसात के रूप में देखो तो भगवान की भी मंज़ूरी आई है,


वादा है मेरा साथ दूंगा तुम्हारा हर दम,


खुशियाँ होंगी अब बस, ना होगा कोई गम,


उस दिन से बस साथ ही हैं हम,


बस यही थी मेरी हसीन प्रेम कहानी,


जिसे आज हमारी बेटी 'मुस्कान' की शादी के दिन, सबको सुनाने जा रहा हूँ अपनी ही ज़ुबानी!



रितिका बावा चोपड़ा

नई दिल्ली

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Ritika Bawa Chopra

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