बचपन में पिता के कंधे पर जिसे बैठने को मिल जाए,
उसे आसमान छूने की ज़रूरत क्या है?
सारी दुनिया का नज़ारा अगर ऐसे ही दिख जाए,
तो हवाईजहाज़ में उड़ने की ज़रूरत क्या है?
पिता का हाथ थाम कर अगर चलने को मिल जाए,
तो रास्ते की ज़रूरत क्या है?
जब सफ़र इतना अनमोल बन जाए,
तो मंज़िल की ज़रूरत क्या है?
पिता के साथ बैठकर अगर ज्ञान की कुछ बातें हो जाए,
तो किताबें पढ़ने की ज़रूरत क्या है?
पिता के अनुभवों का पिटारा अगर खुल जाए,
तो ज़िन्दगी के इम्तेहानों से व्याकुल होने की ज़रूरत क्या है?
पिता वह छायादार वृक्ष है जिसकी छाया मिल जाए,
तो मजबूत छत की ज़रूरत क्या है?
जब पिता के दिल में बसेरा मिल जाए,
तो मकान की ज़रूरत क्या है?
पिता चमकते चाँद की भाँति है जिसकी रोशनी मिल जाए,
तो दिया जलाने की ज़रूरत क्या है?
रात कितनी भी काली और गहरी क्यों न हो जाए,
फिर भी अंधेरे से डरने की ज़रूरत क्या है?
पिता वह चट्टान है जो तुम्हारे आगे खड़े हो जाए,
तो मुश्किलें टकराकर लौट जाएँ
फिर चाहे आँधी आए या तूफ़ान,
घबराने की ज़रूरत क्या है?
पिता का हाथ हो जो सिर पर,
तो ताज की ज़रूरत क्या है?
जब हर ख्वाहिश बिना कहे ही पूरी हो जाए,
तो अल्फाज़ की ज़रूरत क्या है?
पिता के बारे में जितना लिखा जाए,
वो कम है,
जब आँखें कर सकती है दिल का हाल बयां,
तो कलम की ज़रूरत क्या है?
©रितिका बावा चोपड़ा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
भावपूर्ण सृजन
Beautifully penned ❤️
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