शब्दों की खेती मुझे बहुत है भाती,
किसान का परिश्रम मुझे याद दिलाती,
मैं भी एक एक पंक्ति जोड़कर, रोज़ नई कविता रच लेती हूँ,
कभी कभी कुछ पन्ने भरकर, कहानियाँ भी बुन लेती हूँ,
शब्दों से मैं अक्सर अपने मन का खेत जोत लेती हूँ।
चुप चाप रहकर भी बहुत कुछ बोल लेते हैं शब्द,
जाने अपने अंदर कितने छुपाकर रखते हैं दर्द,
हर शब्द बगिया के एक नए फूल की तरह है,
जिनसे रोज़ बन सकता एक नया गुलदस्ता है,
अलग अलग खुशबू बिखेरता है हर एक शब्द,
जैसे बहार में महक जाता है जग सब।
थोड़ा प्रयत्न तुम करके तो देखो,
मन के भावों को बस पिरोकर तो देखो,
शब्दों के बीज बोकर तो देखो,
अपने ख्यालों को धूप देकर तो देखो,
कुछ चंचलता पानी सी छिड़को,
थोड़ा प्यार से तो सींचो,
मानती हूँ थोड़ी मेहनत तो लगेगी,
पर वादा है सफलता ज़रूर मिलेगी,
एक एक करके नया पौधा रोज़ खिलेगा,
तुम्हारे जज़्बातों का खेत एक दिन ज़रूर बनेगा,
इस खेत का किसान तुम ज़रूर बनना,
शब्दों के अनगिनत भावों से तुम भी अपने मन का खेत जोत लेना।
Comments
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