आज़ादी

Poem on आज़ादी

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Ritika Bawa Chopra
Ritika Bawa Chopra 06 Nov, 2022 | 1 min read

आज़ादी की कीमत किस किसने चुकाई

आज़ादी के लिए कितनों ने जान गवाई 

क्या हिसाब रखा है किसीने

कितने घरों को उजाड़ कर मिल पाई


किसी के माथे का सिंदूर है छीना

किसी की ममता को लूटा

किसी के सिर से पिता की छांव को छीना

किसी की राखी का बंधन तोड़ा


आज़ादी की कीमत किस किसने चुकाई

आज़ादी के लिए कितनों ने जान गवाई 

क्या हिसाब रखा है किसीने

कितने घरों को उजाड़ कर मिल पाई


खुली हवा में सांस लेना

जो लगता है अब हमको अपना हक

जाने कितनी चिताओं पर खड़ा है आज का आज़ाद हिंद

गिन पाना होगा मुश्किल, जाओगे तुम थक


अब तो बंद करो जात पात की ये जंग

इंसान में ढूंढो बस इंसानियत के रंग

मिलकर रहे हम सब, भूल के पुराने शिकवे गिले 

ना धर्म ना मज़हब की दीवार हो बस प्रेम से हम सब गले मिले


आज़ादी कर कर्ज़ अगर है चुकाना

देश का नाम बस ऊंचा लेजाना

हर हिंदुस्तानी संग मिलकर चलना

और न अब किसी मां के लाल का खून बहाना।



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