"अरे वाह कुसुम,तू तो शादी के बाद कितनी बदल गई है कितनी सुंदर लग रही है।लगता है हमारे जीजाजी बहुत खयाल रखते हैं तेरा।"नव ब्याहता कुसुम को उसकी भाभी ने छेड़ते हुए कहा।
"नहीं नहीं भाभी,मैं तो जैसी पहले थी वैसी ही हूँ।आपको कोई गलतफहमी हुई है।"कुसुम ने लजाते हुए कहा।
"न बताओ ननद रानी लेकिन हमें पता है सब।वैसे भी कल होली वाले दिन तो आ ही रहे हैं नन्दोई जी।सब पता लग जाएगा उस दिन।"
"क्या भाभी आप भी।"शरमाते हुए कुसुम कमरे में चली गई।आईने में खुद को निहारा तो लगा भाभी कुछ गलत भी तो नहीं कह रही।विनय हैं ही इतने अच्छे।इतना मानते हैं मुझे।सिर्फ विनय ही क्यों उनके यहां सभी बहुत अच्छे हैं।अगर शादी के बाद पहली होली मायके में मनाने का रिवाज न होता तो विनय मुझे आने भी न देते मायके।
दूसरे दिन सुबह ही विनय आ गए।कुसुम की भाभी ने उन्हें चाय नाश्ता वगैरह दिया और रसोई में आकर कुसुम से हौले से कहा,देख ले नन्दोई जी की नजरें तुझे ही ढूंढ रही हैं।जाकर दीदार तो करवा दी अपने।तभी कुसुम मां ने उसे आवाज दी।कुसुम गई तो विनय भी वहीं बैठे थे एक पल के किए दोनों की नजरें टकराईं और विनय ने हल्की सी मुस्कान के साथ देखा।कुसुम के गोरे गाल गुलाबी हो गए।बहाने से रसोई में आ गई।
"क्या बात है ननद रानी अभी तो होली का रंग लगा भी नहीं और तुम्हारा चेहरा लाल गुलाब हो रखा है।नन्दोई जी के प्यार का रंग है न ये।मैं बहुत खुश हूं तेरे लिए।
शरमाते हुए कुसुम अपनी भाभी से लिपट गई और कहा,"हां भाभी सही कहा आपने।बहुत अच्छे हैं वो।उन्होंने अपने प्यार के रंग से रंग दिया है मुझे।"
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