लाल लाल चुनरी
लिपटे हुए पूजा के नारियल
यज्ञ आहूतियों से सुगंधित वातावरण
आज चुप हो
ताकती हूँ इधर उधर
सब के लिए एक शक्ति हूँ मैं
वर्णित हुँ सबके भावों में देखो
कहीं माँ सी बहन सी महबूबा भी
आज उत्कृष्ट उपमाओं से घिरी हूँ मैं
कल फिर चिल्लाऊंगी
इस बधिर समाज में बस
एक 'औरत' तक होने के लिए मैं
ये समाज बस बोलना ही जानता है
सुनना इसकी प्रकृति में कभी था ही नहीं
तो फिर
नहीं कुछ नहीं
बस इन खोखले तमगों को
फिर समेट संदूक में बंद रख दूंगी मैं
कल से फिर सड़क के कोने में ,नाले में
नुची हुई , फटी हुई ,बिखरी हुई ,टूटी हुई
मिल जाऊंगी तुम्हें , तब शोर मचाना तुम ...
तब तुम चुप तो नहीं हो जाओगे ?????
R.Goldenink
(Rakhee)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Wonderful write-up
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