घर में बीमार उस पर दोहरी मार

समाज की सच्चाई

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 15 Jun, 2020 | 1 min read

सर ऐसा मत करिए..पत्नी को भी टीचिंग जॉब छोड़नी पड़ी है माँ का ध्यान रखने के लिए..आप भी दो दिन की सैलरी काट लेंगे तो बड़ा मुश्किल हो जाएगा महीना काटना।।माँ का भी ट्रीटमेंट चल रहा है..फिजियोथेरेपी चल रही है दवाईयां है और भी एक्स्ट्रा खर्चे है सर,..

देखो संजय कंपनी का रूल है..तुम कंपनी की तरफ से दी हुई छुट्टी पहले ही ले चुके..सैलरी के साथ केवल वही छुट्टियां मिलेंगी जो तुम अपनी बीमारी के लिए लोगे ना कि किसी फैमिली मेंबर..अब जाओ काफी काम पेंडिंग पड़ा है।।

संजय अपनी सीट पर सर पकड़ कर बैठ गया.. कैसे चलेगा महीना भर.. दोनो बच्चो के खर्चे, माँ का इलाज ,राशन सभी चीज़े जरूरी है

शाम को संजय घर पहुँचा, दरवाजे से घुसते ही ड्राइंग रूम में 6-7 लोग बैठे दिखे..कुछ जाने पहचाने थे कुछ नही...वो सबको नमस्ते कर सब्जियों का थैला लिये सीधा रसोई में पत्नी चंचल के पास पहुँचा।।

"ये लोग कौन है,?एक तो माँ के मायके से है शायद शक्ल देखी सी लग रही है।।बाकी लोग?

"सब वहीं से है..पता नही क्या रिश्ते बताए समझ नही आया मुझे..माँ को देखने आए है.बिस्कुट नमकीन खत्म हो गया तो पकौड़ी दी चाय के साथ..बेसन भी खत्म है अब..दूर से आये है तो खाना भी खाएंगे..आटा ,चावल तो बना लिये सब्जी के लिए आपका ही इंतजार कर रही थी।।"

"क्यों परसो लाया था सब्जी वो ?"

कल गांव से दोनो देवर,कुनबे के चाचा जी आये थे ..बच्चे थे उनका खाना बना था ना।।

ये बीमार को देखने आते है बच्चो को साथ लाने का क्या तुक है..इतने बड़े बच्चे है.. नही तो बीवियों के पास तो छोड़ ही सकते है।।

ऐसे तो बजट बिगड़ जाएगा।।इतने लोग देखने आ रहे है.. हजारों रुपए तो चाय नाश्ते में खर्च हो गए।।

"अब क्या कर सकते है?"

"आप बैठिए.चाय लेंगे या आप का भी खाना लगा दु.."

"क्यों एक कप दूध और खराब करना.. खाना ही लगा देना मेरा भी।।

संजय बाहर मेहमानों के पास बैठ गया।। दो शब्द सांत्वना के बोलने के बाद वो लोग वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर बहस करने लगे।।

खाना खाकर संजय उठने ही वाला था कि रिश्ते में उसके ममेरे भाई ने कहा"यार, संजय जहाँ बुआ जी(संजय की माँ) को दिखाया है वहाँ अपने मामा यानी पापा को भी दिखवादे..गांव में आराम नही लगा..आंखों में बड़ी दिक्कत है इन्हें.." "लेकिन भईया माँ को तो लकवा है,न्यूरो वाले को दिखाया था।।"

"कोई नही यहाँ आंखों का कोई डॉक्टर हो तो बता दे।।"

संजय एक बार इसी तरह झटका खा चुका था,जब उसके गांव से कुनबे की कोई बुआ जी अपने पोते को लिए माँ को देखने आयी थी..

पोते को स्किन एलर्जी थी,खुद अपने बुढ़ापे का कहकर की डॉक्टर के यहाँ चक्कर नही काट सकती ,संजय को भेज दिया पोते के साथ इस कथन के साथ कि आते ही जो भी खर्चा होगा वो दे देंगी।।दो दिन रहकर गयी ,ना उन्होंने पैसे दिए ना संजय ने मांगे..ढाई हजार खर्च हुए थे तब भी।।

बात को टालने की गरज से संजय बोला "अब तो डॉक्टर उठ गया होगा और शाम को माँ का चेकअप कराना है।"

"कोई नही हम कल चले जायेंगे सुबह दिखा कर"

संजय फस गया गुस्सा आया खुद के माता पिता पर क्यो ऐसे संस्कारो की घुट्टी पिलाई की चाह कर भी ना नही निकल रही।।अगले दिन eye स्पेशलिस्ट को दिखाने ले गए..जैसे ही डॉक्टर ने अपनी बात खत्म की ममेरा भाई पिता को लेकर निकल लिया, संजय को मजबूरन फीस देनी पड़ी।।

उसके बाद दवाई का पर्चा चूंकि संजय के पास था तो दवाई भी उसी को लेने के लिए बोलकर दोनो बाप बेटे किसी और जानकार के घर चले गए ।।शाम को दवाई ले गांव निकल गए, एक बार जानने की कोशिश नही की के कितना खर्चा हुआ।।

अगले दिन तक करीबन 5-6 लोग और देखने आ चुके थे..संजय छुट्टी नही ले सकता था इसलिए सब चंचल को ही सम्भालना था।।दूर से आने वाले नाश्ते के बाद खाना खाते..बिस्कुट,नमकीन,समोसे, दूध में लगातार पैसे खर्च हो रहे थे।।रात को दोनो पति पत्नी हिसाब लगाने बैठे तो खर्चा करीबन साढ़े 4 हजार ऊपर जा चुका था औऱ अभी महीने में 4 दिन बाकी थे।।

"अपनी छुटकी का एडमिशन नही हो पायेगा इस बार भी डांस क्लास में"

"वो दुखी हो जाएगी"

"क्या कर सकता हु चंचल?

"तुम्हारे दांतो की दिक्कत भी तो बढ़ती जा रही है,तुम भी कहाँ जा पा रही हो डॉक्टर के पास..

"अरे कोई नही, जहाँ इतने दिन निकल गए कुछ दिन और सही.."

"उफ्फ !!सर फटा जा रहा है कैसे होगा सब..घर मे सिर्फ 500 रुपए है अब..हफ्ते की सब्जी,दूध, राशन कैसे?क्या करूँ?

"आप तो ये सोचो कि कोई आ गया माँ को देखने तो क्या होगा? कितनो को तो विदा का नेग भी देना पड़ा.. क्या करते रिश्ता ही ऐसा था।।जैसे उस दिन चाची जी अपनी नई नवेली बहु को ही ले आयी..और पिताजी के वो पुराने दोस्त अपने नवजात पोते को...

"

तभी छुटकी आवाज देती हुई आई"पापा दादी बुला रही है आप दोनों को..

दोनो पति पत्नी पलंग के पास बिछी कुर्सियों पर बैठ गए।।

"संजय बेटा मेरे दोनो पैरों के लकवे ने मुझे ही नही पूरे घर को लाचार कर दिया है..मैं सब देख पा रही हु लेकिन कुछ कर नही पा रही..तुम्हारे पिता जी की बदौलत जो पेंशन मेरे नाम से आ रही थी..कल जाकर बैंक से निकाल लाना"

"लेकिन माँ वो तो आपने छुटकी और तीर्थ के लिए रखे है।।"

"जब बच्चे परेशान हो तो इन लकवाग्रस्त पैरों से कौन सा तीर्थ करूँगी ..रही बात छुटकी की, तो तुम दोनों हो ना उसके लिए"

"देखने के लिए आने जाने वालों का सत्कार करना जरूरी है..लेकिन फालतू के पचड़ों में नही पड़ना..तुझसे मना नही होता तो मै बात संभालूंगी अब से .."

"लेकिन माँ आने वाले ये भी तो सोचे कि घर मे बीमारी की वजह से पहले ही काफी खर्च हो रहा होगा। "

"बेटा अगर लोग देखने ना आये तो कल को हमी लोग बैठ कर पंचायत करेंगे कि बताओ बीमारी में देखने भी नही आये।।हमे पता चलेगा तो हम भी देखने जाएंगे.."

"लेकिन बीमार को देखने का मतलब दूसरे पर बोझ बनना नही है.. ये बात लोगो को समझनी चाहिए की आप किसी का हल चाल लेने जा रहे हो आउटिंग पर घूमने नहीं।।"

"चलो माँ अब आप सो जायो..कल पैसे निकालकर छुटकी का डांस क्लास में एडमिशन कराना है..शानू का vaccination भी है परसो..आपने मुश्किल से बाहर निकाल लिया माँ।।"

"माँ तो होती ही इसलिये है बेटा जी...."

आप लोगों का क्या कहना है इस बारे में. यदि किसी के घर कोई बीमार है तो उसे देखने जाते वक्त क्या करना चाहिए हमे....

रेखा तोमर स्वरचित एवं मौलिक


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