वो बड़ी ही कमजोर सी थी जब पहली बार घर आई थी।उसकी बहन उसे लेकर आई थी घर पर।
"भाभी जी, ये है लक्ष्मी मेरी बहन..आप बात कर लो और काम बता दो इसे"
मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा,ये इतनी कमजोर सी है...बल्कि सच कहूँ तो अजीब सी थी।आंखे और गाल धंसे हुए।केवल मोटे होंठ जो चेहरा होने का भान करा रहे थे।
सिर पर बालो के नाम पर केवल एक गुच्छा जिसे साप्ताहिक बाजार में मिलने वाले क्लिप से रोक रखा था उसने।बिंदी जरूर माथे से बड़ी लगाई थी।
वो कुछ नही बोली केवल अपनी बहन को ही बोलते हुए देख रही थी।
"सुन रीमा, तू नही कर सकती क्या"?मैंने लक्ष्मी पर नजर गढ़ाए पूछा
"ना भाभी, पहले ही कई घर ले रखे है मैने..टाइम न है..ये अच्छा काम करेगी"रीमा ने लक्ष्मी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा
लगा जैसे हाथ के वजन से ही वो एक तरफ झुक गयी थी।वो अब भी चुप थी।
मैं बहुत ही असमंजस में फंस गई थी, नया शहर,छोटा बच्चा,ऑफिस का ऑनलाइन वर्कलोड,मेड की बहुत सख्त जरूरत थी मुझे..किसी ने रीमा का नाम सुझाया था।उसे मिलने बुलाया तो वो अपनी बहन को ले आई।
मरती क्या न करती, मैंने हाँ कर दिया।अगले दिन सुबह 6 बजे वो दरवाज़े पर थी।
"आओ, इतनी जल्दी आ गई..घर का काम भी तो होगा,वो कौन करेगा"?
"कर आई,झाड़ू कहाँ है"?उसने कुछ शब्दों में जवाब दिया।
वो अपने काम में लग गई,और मैं रोजमर्रा के काम मे, वो कुछ बोल ही नही रही थी।बस चुपचाप कुछ जरूरी बात पूंछती और काम मे लग जाती।
बेटा अभी सो रहा था।मैंने उसके लिए भी चाय बनाई।
"लो चाय ले लो,सुबह कुछ खाकर नही निकली होगी"
उसने दयनीय नजरो से मुझे देखते हुए चाय ले ली..शायद उसकी आंखें भी गीली थी या मुझे वहम हुआ होगा।
वो रोज़ सुबह 6 बजे आती, पूरे दिन काम मे लगी रहती ,मैं अकेली रहती थी जो खुद खाती उसे भी देती।उसने कभी मना नही किया।वो बेटे को भी संभालती, उससे एक लगाव सा हो गया था।
अच्छे खान पान और शायद मेरी अप्रत्यक्ष देखभाल से उसकी सेहत सुधरने लगी थी।बाल और चेहरे पर चमक आ गई थी।गाल भर गए थे।
कुल मिलाकर उसकी असली सुंदरता दिखने लगी थी, वो बदल गयी थी।
पर मैं उसके बारे में कुछ नही जानती थी।
एक दिन मैं काम से थककर सोफे पर अधलेटी थी,वो बेटे को गोदी में उठाये मेरे पास आई।
"भाभी जी, गुड्डू के पापा..."? उसने प्रश्नवाचक नजरो से मुझे देखा
वो न के बराबर बोलती थी, और आज बोली तो ये सवाल..मैं भड़क गई।
"क्यों क्या करना है जानकर..?नही है गुड्डू के पापा..सब कुछ मैं हु इसकी.."
"माफ करना भाभी जी..मुझे लगा 3 महीने में कभी देखा नही तो.."
"मुझे उस इंसान की शक्ल से भी नफरत है, धोखेबाज..अपनी मुंहबोली बहन बताता था उसे..छिईई...खुद आंखों से न देखती तो कभी यकीन भी न करती..."
पिछले साल का जख्म आंसू बनकर मेरी आँखो से बह निकला था।मैं फूट फूट कर रो पड़ी।
लक्ष्मी जल्दी से बेटे को कमरे में लिटाकर आई और मेरे पैरों के पास बैठ गई।
"चुप हो जाइए भाभी जी..मैं समझ सकती हूं..आप पर क्या बीत रही है"
"नही समझ सकती.. कुछ नही समझ सकती..बदसूरत होने का दर्द..नही समझ सकती कि जब पति खड़ा तो आपके बराबर में हो लेकिन खूबसूरती दूसरी औरतों की नाप रहा हो तो कैसा लगता है..मेरा रंग,बेडौल शरीर..सब कुछ कांटे जैसा था उसकी आंखों में..उस दिन..उस दिन..पार्लर से लौट रही थी मैं..सोचा आज इतना कुछ कराया है वो नोटिस करेगा..पार्लर से बाहर निकलते हुए देखा..वो अपनी मुंहबोली बहन के साथ पार्लर के सामने वाली रोड़ पर था..जिस इंसान के पास बेटे का वैक्सीनेशन कराने का टाइम नही था वो...वो उस लड़की के साथ गाड़ी में...गले लगकर.."
मैं चींख चींख कर बोल रही थी...रो रही थी...लक्ष्मी मुझे देखे जा रही थी।
"छोड़िए भाभी जी,भूल जाइए सब"वो मेरा हाथ सहलाते हुए बोली
"ये सब भूलना आसान नही होता लक्ष्मी..जिंदगी भर के लिए वो सीन दिमाग और आंखों में छप जाते हैं...तुम देखो अब कितनी खूबसूरत लगने लगी हो..सोच कर देखो तुम इतनी सुंदर न होती और तुम्हारा पति दूसरी औरत के साथ.."
"मेरी बहन"वो गर्दन झुकाए बोली
"क.. क.. क्या"मैं झटके के साथ खड़ी हो गई
"मैं इससे भी सुंदर थी भाभी जी..मेरी सुन्दरता के कारण ही मेरा रिश्ता हुआ..आप कहती हो मैं सुंदर न होती और मेरा पति दूसरी औरतों को देखता तो मुझे कैसा लगता..हा हा हा..मेरे सुंदर होने से कोई फर्क नही पड़ा.. मुझे रोज़ पार्क में घूमने भेजता था वो बोलता था..तेरी सेहत अच्छी रहेगी..एक दिन गयी तो रास्ते मे ही चक्कर आने लगे वापस लौट आई... मेरी बहन थी कमरे में..."इतना कह वो चुप हो गई
"य..ये रीमा.."मैं हकलाते हुए बोली
"हाँ.. अपने पति के पास नही रहती वो..मेरे घर मे रहती है..मेरे कमरे में..आप पढ़ी लिखी थी शहर छोड़ आई.. मैं कहाँ जाती"?इसलिए मुझे काम दिलवाया उसने..मैं भी उस नरक से बचकर कुछ समय आपके पास गुजार लेती हूं.."वो बहुत ही ठंडी आवाज में बोली
मैं सामने बैठी उस औरत को देखकर हैरान थी..कितना कुछ झेल रही हैं ये...मुझसे कई गुना..
"तुम उसके खिलाफ केस क्यों नही करती"
"आपने किया"उसने उल्टा सवाल किया
"म..मैं..मुझे उससे कोई मतलब ही नही रखना..मुझे उससे कुछ चाहिए भी नही"
"मुझे भी नही चाहिए..कानून के सहारे वो मुझे अपना भी ले ..तो मेरा अपना तो फिर भी न हो सकेगा..बस अब तो अपने पैरों पर खड़ा होना है.. इसलिए आपके घर से सीधे सिलाई कढ़ाई संस्थान में जाती हूं..सरकारी है कम पैसों में बहुत कुछ सिखाती है वहाँ की मैडम.."
"वाह लक्ष्मी तुम्हारे जीवन जीने की जिजीविषा वाकई काबिले तारीफ है"मैंने अपने आंसू पोंछते हुए कहा
"सब आपकी वजह से..वरना अंदर से तो मैं उसी दिन मर गयी थी..बस शरीर से प्राण निकलने बाकी थे..खाना खाएं दो दो दिन हो जाते..आपने अपने साथ खाना पीना शुरू करवाया..शरीर मे जान पड़ी तो दिमाग ने काम करना शुरू किया..अब बस अपने जैसी औरतों के लिए कुछ करना चाहती हूं.."
"ओह्ह लक्ष्मी आज तुमने जीने का एक लक्ष्य भी दे दिया..मैं तुम्हारे साथ हूं..इसी गम से गुजर रही औरतों को जीने की राह और सलीका सिखाएंगे हम..हर कोई नही समझ सकता कि जीवन मे मिलने वाला सबसे बड़ा धोखा जीवनसाथी से मिलने वाला धोखा होता है..जिसके जख्म भरने में आधी जिंदगी निकल जाती है..फिर भी निशान रह जाते है...बस उन्ही निशानों को मेकओवर से छुपाना सिखाना है हमे..."
"मैं आपके साथ हूं भाभी जी"लक्ष्मी ने मुस्कुराते हुए कहा
"बिल्कुल और आज से, अभी से तुम मेरे साथ रहोगी यही..समझी..बस एक शर्त है"
"क्या"?
"प्लीज सुबह 6 बजे मत उठना मुझे चैन से सोने देना"
और हम दोनों ज़ोर से हँस पड़ी..दोनों का गम एक था..दोनों की हँसी भी एक थी..आज दोनों मुद्दतो बाद खुल कर जो हँसी थी...
रेखा तोमर
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice story
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