तुम्हारी कागज की वो नाव काश मैं डूबने ना देता
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वो बहुत खूबसूरत थी..बहुत खूबसूरत..इतनी की पड़ोस के चवन्नी अठन्नी के आशिक तो छोड़िए,पड़ोस की औरते भी उसे अपनी बहू बनाने के सपने देखती..
क्यों?अरे आने वाली पीढ़ी खूबसूरत हो जाती ना इसलिए..
खैर मैं चवन्नी अठन्नी नही एक रुपए वाला आशिक़ था।क्योंकि मैं सिर्फ रोमांटिक गाने नही गाता था बल्कि उसके पिता के बेसुरे गानों पर वाहवाही भी करता था।
फूल उसके लिए नही पर उसकी मम्मी की पूजा के लिए जरूर लाता। एक बार सुबह 6 बजे जॉगिंग के बहाने निकल जब फूल लेकर लौटा तो मम्मी को अपनी तरफ घूरते हुए देखा।
"क्या रे आशु, मुझे तो कभी फूल नही दिए लाकर"
"आपने मंगाए ही नही"मैंने नजर चुराते हुए जवाब दिया
"हम्म तो गुलशन की मम्मी ने तुझे कहा था"?
"न..नही वो तो"
"बेटे जी..कोशिश तो अच्छी हैं पर ज़रा शक्ल पर गौर कर लिया होता"
"इत्ती तो सुंदर है वो"
"अबे गधे अपनी शक्ल पर गौर कर लिया होता"
अब मम्मी को क्या पता प्यार शक्ल देखकर नही होता।
मेरी मम्मी उस जमाने के हिसाब से बड़ी फारवर्ड थी। तभी तो एक बार मुझसे ना बोली कि पहले 7th क्लास पास कर लो तब आशिकी लड़ाना।
हैरान मत होइए..छोटे बेशक थे पर प्यार हमारा सच्चा था।हम तो सीधे शादी का सोचे बैठे थे।
पड़ोस के सब बच्चे जब खेलते तब मैं हमेशा उसे अपनी टीम में रखता..ये बात अलग थीं कि उसे टीम के लेने का सीधा अर्थ खेल में हार जाना था।
पड़ोस के बड़े क्या बच्चा बच्चा ये बात समझता था कि आशु, गुलशन को जानबूझकर टीम में रखता है..पर वो सुंदरता की मूर्ति..चलिए छोड़िए..
7th से कब हम दोनों 10th में आ गए पता ही नही चला। मेरे प्रेम की क्वालिटी, क्वांटिटी, इंटेनसिटी, सब बढ़ चुकी थी। अब शायद वो भी समझने लगी थी।
पर कसम 10th क्लास के उस स्टील वाले ज्योमैट्री बॉक्स की कभी मैंने कोई बदतमीजी नही की..हमारे
मोहल्ले में घर दो हिस्सों में बंटे थे..6 घर दांये 6 घर बाएं..बीच मे एक छोटी सी गली..बारिश के दिनों में उस गली में पानी भर जाता।
सारे बच्चे इक्कठे होकर कागज की नाव बनाते, गली के एक छोर से डालते और हाथ या लकड़ी से ढेलते हुए दूसरे छोर तक लाते।ये खेल मोहल्ले के सभी बच्चो ने 12th तक खेला।
इस छोटी सी बाल क्रीड़ा में मेरे प्रेम का सम्पूर्ण समपर्ण दिखने लगा था।
उसकी नाव के ठीक बराबर मैं अपनी नाव रखता, उसकी नाव रुकती तो मैं भी रोक देता।तैरते हुए जब हम दोनों की नाव टकराती, मेरे मन मे जलतरंग बज उठती।
धीरे धीरे वो इस खेल को समझ गयी, जानबूझकर अपनी नाव बीच मे डुबो देती..फिर मुस्कुरा कर हमारी तरफ देखती..हम प्रेम में थे पर आत्मसम्मान भी कोई चीज़ है..हम नाव ना डुबोते पर खेल खत्म कर देते।
कॉलेज की जिंदगी शुरू हो चुकी थी..वो गर्ल्स कॉलेज में चली गई.. गाहे बगाहे उसके अफेयर के किस्से सुनाई देने लगे..वो अब बड़ी हो गई थी और मैं अब भी उसे अपनी टीम में रखना चाहता था।
एक दिन पता चला वो लव मैरिज कर रही है..उसका परिवार मान गया था..वो लोग अब एक पॉश कॉलोनी में रहने लगे थे।
उसकी मम्मी की, मेरी मम्मी से फ़ोन पर होने वाली बातें ही हम दोनों के बीच का सूत्र था।जब जब मम्मी बात करते हुए उसका नाम लेती मेरा दिल धक्क से या तो धड़कना बन्द कर देता या अपनी स्पीड दुगुनी कर लेता।
मैं समझ चुका था कि मेरा प्रेम केवल बचपने की बात नही थी..वो मेरे दिल मे अलग जगह रखती थी।कुछ दिन बाद उसका विवाह था। मम्मी खुशी से तैयारी तो कर रही थी पर मेरे चेहरे की उड़ती रंगत उनसे छुप ना पाई थी।
एक दिन युहीं मैं बैठा हुआ किताब के पन्ने पलट रहा था कि मम्मी कमरे में आई।
"काफी दिनों से उदास दिख रहा है..कोई बात है?"
"नही क्या बात होती"मैंने भर आये गले को भरसक कोशिश के साथ साफ करते हुए कहा
"हम्म,तुम कहो तो एक बार बात करूं"?
"अब क्या फायदा, कुछ दिन बाद तो उसकी शादी ही है"
"किसकी?मैं तो तुम्हारे मनपसन्द कॉलेज में तुम्हारे एडमिशन की बात तुम्हारे पापा से करने की कह रही"
"अ.. ओह.. अच्छा!!"
"तो यही बात है, मुझसे कहने में इतना समय लगाया..गुलशन से आज तक कहा नही तो फिर ये देवदास बनकर किसे दिखा रहे हो?"
"मम्मी प्लीज"
"क्या प्लीज?जब कुछ हुआ ही नही तो दुख काहे का..अब समय निकल चुका..वो किसी और की अमानत है अब..अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो अब"
इतना कह मम्मी चली गई, बात तो उनकी सही थी। मेरी नाराजगी आखिर है किससे?गुलशन से जिसे कभी कुछ बोल ही नही पाया.. हालातो से जो मेरे खुद के बनाये हुए थे..
आगे तो बढ़ना ही था और मैं बढ़ गया..उसकी शादी से ठीक पहले मैं दूसरे शहर के कॉलेज के हॉस्टल में चला गया।
मम्मी ने फोन पर बताया कि शादी अच्छे से हो गई.. मैं, जो अब तक एक फिल्मी चमत्कार की उम्मीद लिए बैठा था पूरा टूट गया।
6 महीने बाद वेकेशन में घर वापस आया, मम्मी सामने और पापा चेहरा छुपा कर रोए, वो लोग जानते थे मेरी लाइफ में क्या चल रहा है।
रात को मैं बिस्तर पर लेटा मोबाइल स्क्रॉल कर रहा था, मम्मी ने धुलने के कपड़े उठाते हुए मेरी तरफ देखा, कुछ रुककर बोली "गुलशन की मम्मी ने कहा था तुम आओ तो उनसे मिल लो एक बार"
मैंने बिना आँख उठाये पूछा"क्यों"?
"शायद कुछ पढ़ाई से सम्बंधित बात करनी है"
"हम्म"मैं मोबाइल बन्द कर लेट गया।जाने क्यों गुलशन से जुड़ी हर चीज़ सिर्फ घाव हरे कर दुख दे रही थी।
सुबह मैं देर से उठा, मम्मी ने फिर याद दिलाया कि मुझे गुलशन के घर जाना है।
मैं धड़कते दिल के साथ गुलशन के घर की तरफ चल दिया,जैसे जैसे घर नजदीक आ रहा मेरी भावनाएं बेकाबू हो रही थी।बार बार खुद को समझा रहा था कि मुझे सामान्य दिखना चाहिए
बड़े से गेट पर लगी बेल बजाई, दरवाजा खुला, सामने वो थी..वो जो आज भी मेरे लहू के हर कतरे के साथ बहती है..वो जिसका चेहरा एक पल के लिए आंखों से नही हटा..मेरे बचपन का प्यार..गुलशन
मन किया उसे बाहों में भर लू,पर वो मेरी नही थी.. ये सोचते ही मन कड़वाहट से भर गया।
मैंने हंसते हुए पूछा"तो,कैसी चल रही तुम्हारी हैप्पी मैरिड लाइफ"
वो सूनी आंखों से मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराई,उस मुस्कान ने मुझे अंदर तक बेध दिया। गौर से देखा कहाँ गयी इसके चेहरे की रौनक?
तभी उसकी मम्मी अंदर से आई, अजीब सी निगाहों से उसे देखते हुए बोली"अब हट भी जाओ रास्ते से..या यहाँ भी गुल ख़िलाने है"
मैं हैरानी से आंटी की तरफ देख रहा था,गुलशन अपने आंसुओ को छुपाती हुई अंदर चली गई।आंटी ने मुझे बिठाया, ना पानी, ना चाय और उन्होंने बोलना शुरू कर दिया।
"देखो आशु तुमसे क्या छुपाना, गुलशन की शादी के 2 महीने बाद ही इसके ससुराल से शिकायतें आने लगी थी..इसने वहाँ किसी को नही अपनाया..ना सास ससुर की देखभाल, ना पति को कोई सुख..अब तो महारानी वहाँ किसी लेक्चरर के चक्कर मे पड़ गई.. बस ससुराल वाले छोड़ गए यहां हमारी छाती पर..अब तुम इसकी कॉलेज एंट्रेंस के लिए तैयारी करवा दो तो हम इसे यहाँ से भेज दे..वहीं रहे हॉस्टल में हमारी आंखों से दूर"
मैं मुँह खोले सब सुन रहा था..सिर्फ सुन रहा था,यकीन मुझे एक भी बात पर नही था। मेरी गुलशन ऐसा कुछ नही कर सकती।
मैंने आंटी से कुछ ना कहते हुए सिर्फ इतना कहा"गुलशन से मेरी बात करा दीजिये, थोड़ा डिस्कस कर ले फिर पढ़ाई शुरू करेंगे"
आंटी उठकर चली गई, गुलशन आई...मैं किसी भी तरह उसे असहज नही करना चाहता था तो मैंने मुद्दे की बात शुरु की"तो कौन से सब्जेक्ट में दिक्कत है तुम्हे?2nd year तो पूरा किया था ना"?"
"हम्म किया था..इंग्लिश मुझे समझ नही आता..बोलना तो बिल्कुल नहीं.. वहां भी बोल नही पाती थी..पति को बेइज्जती लगती तो कहीं लेकर नही जाते थे साथ..पता है वो बहुत बड़े लोग थे..मैं मिडिल क्लास,एडजस्ट ही नही हो पाई..रवि कहते सुंदरता पर फिसल गए वो..बाकी मुझमे कुछ नही..
पता है रोज मैं कोई ना कोई गड़बड़ कर देती..कभी होटल में हाथ से खाने लगती कभी.. कभी आटोमेटिक गैस को माचिस से जलाने की कोशिश करती..सब हंसते तो रवि चिढ़ जाते..फिर मैं अकेली हो गई, रवि को उनके हिसाब की कलीग मिल गई थी..मैं आधी अधूरी ग्रेजुएशन वाली जिसने उनके लिए पढ़ाई छोड़ी अब घर मे अनपढ़ की श्रेणी में थी.."
इतना कह वो इधर उधर देखने लगी, खुद को संभालकर, आंसुओ को रोककर मुस्कुराई..और बोली"पर पता है मैंने हिम्मत नही हारी,घर मे एक महीने की क्लेश और मार पिटाई के बाद मुझे इंग्लिश ट्यूशन की इजाजत मिली..पर मैं नही जानती थी मेरी इज्जत पर कीचड़ उछालने के लिए ये हामी भरी गई थी"
मैं बहुत घबरा गया था क्योंकि गुलशन बहुत कम बोलने वाली लड़की रही है..उसका लगातार यूँ बोलना मुझे डरा रहा था..वो भूल गई थी कि मैं सामने बैठा हूँ.. लगातार बड़बड़ाये जा रही थी.मैं समझ चुका था मानसिक आघात बहुत गहरा है।
आंटी आई..वो अब भी छोटी छोटी घटनाएं आपस मे जोड़ कर बोल रही थी।आंटी ने उसे झिंझोड़ते हुए कहा"क्या बड़बड़ा रही है?15 दिन से तो जबान चिपका रखी हैं"
गुलशन अचानक चुप हो गई..मैं बड़े ही असमंजस में था.. बहुत ही सोच विचार के बाद मैंने कहा"आंटी, मम्मी गुलशन को याद कर रही थी..आप कहें तो मैं मिलवा लाता हूं फिर छोड़ जाऊंगा"
"ठीक है ले जाओ..पर शाम से पहले छोड़ जाना"
गुलशन के चेहरे पर वही चमक दिखाई दी जो जेल से छूटे कैदी के चेहरे पर होती है।
बाहर जोरो की बारिश हो रही थी..मैं गाड़ी चलाते हुए कनखियों से उसे देख रहा था।वो खिड़की से बाहर बारिश की बूंदों के साथ पलके झपका रही थी।
अचानक दिमाग मे एक विचार कौंधा, मैंने गाड़ी साइड लगाई।गाड़ी की रैक में रखी डायरी निकाली, दो पेज फाड़े और नाव बनाने की कोशिश करने लगा।
दोनों कोशिश बेकार रही, गुलशन चुपचाप मुझे देख रही थी..मैंने दोनों कागज बाहर फेंक दिए..गुलशन ने डायरी हाथ मे लेकर मेरी तरफ देखा..मैंने आँखों से हामी भर दी।
गुलशन ने कुछ ही पलों में दो नाव तैयार कर ली,मैंने गाड़ी से उतरकर उसकी तरफ का दरवाजा खोला।
वो चुपचाप बाहर निकल आई
सड़क किनारे खड़े एक पेड़ के नीचे छोटी सी नाली खुदी थी..शायद कोई लाइन डालने का काम शुरू किया गया था।
मैंने एक नाव उसके हाथ मे दी, हम दोनों ने एक साथ नाव पानी मे डाली, हम दोनो हाथ से नाव ढेलने लगें.. दोनों की नाव साथ साथ थी।
अचानक उसने अपनी नाव रोक दी,मेरी तरफ हंसकर देखा..मैने भी अपनी नाव रोक दी..वो कुछ सोचने लगी..आंखों से आंसुओ की एक धार बह निकली और उसने अपनी नाव डुबो दी।
मैंने उसकी तरफ देखा वो फफक कर रो रही थी..इस बार मैंने अपनी नाव नही निकाली।उसकी नाव को निकाल अपनी नाव पर रखा और ढेलते हुए किनारे पर ले आया।
वो चुप हो गई थी..मैंने उसका हाथ पकड़ा और गाड़ी में लाकर बिठा दिया।
कुछ देर चुप रहकर वो बोली"बचपन मे अपनी नाव लेकर चले जाते थे, कभी मेरी डूबी हुई नाव का नही सोचा"?
"तुम जानबूझकर डुबोती थी"
वो चुप हो गई.. मैने उसके हाथ पर हाथ रखा और कहा"अब कभी नही डूबने दूंगा..तुम्हारी कागज की नाव भी काश मैं डूबने नही देता..कह देता जो भी मेरे मन मे था"
गुलशन ने सिर मेरे कंधे से टिका दिया, मैंने गाड़ी स्टार्ट कर दी..एक नए सफर के लिए..
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
🙌👏
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