एक हम थे

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 05 Jun, 2020 | 1 min read

"अरे रे !!आशी लेटी रहो.. अभी डिलीवरी को एक महीना ही हुआ है..अब हमारे वाला जमाना तो है नहीं कि 10 दिन बाद ही बहु को काम पर लगा दिया"

आशी अपनी सास को समझ नही पाती कभी कभी,वो ध्यान भी रखती है साथ ही साथ जताती भी रहती है..आशी को याद आता है कैसे जब आशी शादी होकर आई थी..दूसरे दिन जब उसने पुष्पा जी से पूछा " मम्मी कुछ काम मुझे भी बता दीजिए "

पुष्पा जी ने कहा"अरे!कर लेना काम भी ..अब मैं थोड़ी अपनी तरह आते ही काम पर लगा दु..मुझे तो अगले दिन ही कपड़े धोने को दे दिए थे..तुम जाओ अपनी अलमारी लगा लो"

तब उसे लगा शायद मज़ाक में लेने वाली बात है,तो ज्यादा सोचा नहीं उसने..

लेकिन फिर ये लगभग रोज़ की बात हो गईं

अचानक मेहमान आ जाएं तो "तेरे टाइम पर मेहमानों का आना जाना इतना होता नहीं है मेरे टाइम पर तो गांव से जब देखो कोई ना कोई आकर बैठ जाता..बल्कि कई दिन रहकर जाते थे..मैं तो जब भी तेरे साथ लग जाती हूं.. मेरे साथ तो कोई नही होता था।।"

अगर कभी बुखार हो जाए तो चाय के साथ नाश्ते में इसी तरह की बातें"तुझे तो सास होकर भी चाय बनाकर दे रही हूँ मैं..मैं तो जब तक बुखार में बेहोश ना हो जाती थी घर मे किसी को बीमारी का पता भी ना चलता था..और पता लगने के बाद भी कौन देखता था..सास तो मेरी झाँकती भी ना थी कमरे में.."

नई नई शादी हुई थी देर से उठने की आदत थी..तीसरे दिन जब आँख देर से खुली तो पुष्पा जी नाश्ता बना चुकी थी उसके किचन में घुसते ही बोली"नाश्ता लगा दो टेबल पर..एक बार मैं लेट हो गई थी उठने में, मेरी सास ने पूरे मोहहले में प्रकाशित कर दी थी खबर..तुझे तो जब भी 6 बजे उठना होता है मुझे तो 4 बजे उठना पड़ता था.."

पहले बच्चे के समय इन हिदायतों की जगह की मुझे क्या करना है? कैसे करना है? केवल ये बातें बताई जाती की कैसे मेरी तरह उल्टियां लगने के बाद भी वे सारा काम करती थी..मेरे लिए तो पक्का फर्श है झाड़ू पोछे के लिए उन्हें ,कच्चे पर लीपना होता था।।?मैं दिन में लेट जाती हूं पर उन्हें आराम का टाइम नही मिलता था।।

C section के बाद भी वही सब की, कैसे मुझे डॉक्टर ने bed rest बता दिया लेकिन उन्हें 11वे दिन ही घर का काम करना पड़ा था।।

रात भर बच्चा जगाए तो भी की "तेरा पति तो रोज रात को 12 बजे सोता था और 4 बजे मुझे उठना होता था..

ना रात में चैन था ना दिन में..तुझे तो फिर भी मैं आरामद करने देती हूं दिन में.."

खाना बनाने में कुछ पूछू तो बताने के बाद फिर वही बात की मेरी सास तो मेरे आते ही फ्री हो गई थी..मदद करना तो दूर कुछ बताने को भी तैयार नही होती थी.."

शादी को 7 साल हो गए सासु माँ ने सब कुछ किया लेकिन एक डिस्क्लेमर के साथ कि जो वो कर रही है वो मेरे ऊपर एक बहुत बड़ा अहसान है..उनको जो चीज़े नही मिली वो मुझे मिल रही है..मेरी उम्र में जितना काम उन्होंने किया मैं नहीं करती हूं..

मैं एग्जाम में 2 -2 घन्टे लेकर बड़े बेटे को बैठी रहती हूं जबकि वो इतना काम होने के बाद भी आधे घन्टे में मेरे पति औऱ दोनो नन्दो की पढ़ाई से फ्री हो जाती थी।।

मैं समझ नही पा रही थी कि अपने आप को लकी मानू की मेरी सास मेरी मदद करती है या खुद को एक लूज़र मानू क्योंकि मैं उतनी परफेक्ट नही जितनी सासु माँ.. क्योंकि यही बात तो मदद के बाद मुझे जताई जाती थी..

अब तो सब सादा खाना खाते है तेरे आने से कुछ साल पहले तक दो दो कनस्तर तेल लग जाता था..पापड़ कचरी, लड्डू जाने क्या क्या बनाती थी मैं..आजकल की बहुये तो घर खाना बनाने में ही थक जाती है...

ये बातें केवल काम तक सीमित नही थी लेने देने को लेकर भी यही सब होता..मायके से कुछ भी समान आए तो सासु माँ पापा के सामने ही कह उठती"अरे भाईसाहब इतना करने की क्या जरूरत थी ..अब हमारे ज़माने वाली बात तो रही नहीं..2 kg मिठाई में काम चल जाता है अब तो ..मेरे पिताजी कनस्तर भर भर कर सेवई,रसगुल्ले,बर्फी भेजते थे..पूरे मोहहले में बांटी जाती थी"

पापा के साथ मैं भी ना समझ पाती की जो आया है उसको ज्यादा बताया जा रहा है या कम..

मैं पापा से विदा का शगुन लेने को मना करती तो बोल उठती",लेले ये तो बड़ो का आशीर्वाद500- 500 देते है दोनो बेटियों को तो 1000 लेकर जाती है कहके.. बेटिया तो हाथ का दिया लेती है.".तब कैसे 500 की विदा को पापा 1000 में तब्दील कर देते थे।।

धीरे धीरे मुझे महसूस होने लगा कि मेरा और मेरे मायके का जीवन एक अहसान पर टिका है..वो अहसान जो मेरी सासु माँ हर पल करती है..कभी मेरी मदद करके कभी मायके से आई चीज़ों को स्वीकार करके..और इन अहसानो तले मैं बहुत मौज से जी रही हूँ.. जिस तरह जीने का मौका उन्हें कभी नही मिल पाया था..

एक बार ननद के दोनो परिवार खाने पर आए हुए थे औऱ मैं सर्वाइकल के चक्करों से बुरी तरह पीड़ित थी..फिर भी सुबह 5 बजे से दीवार पकड़ पकड़ सब तैयार में लगी थी क्योंकि खाने के बाद सबका घूमने का प्लान था..और सासु माँ के अनुसार इतनी बीमारी को वो गिनती में ही नही लेती थी..

जबकि उनके यहाँ मेहमानों की गिनती ज्यादा होती थी।।

किसी तरह सारा खाना बना साथ ले जाने को आलू पूरी तैकी..तभी बाहर बड़ी ननद की आने की आवाज से किचन से बाहर निकली तो चक्कर आने की वजह से चेयर से टकरा कर गिर गईं तब तक राजन भी शॉप से आ गए..सबने मुझे उठा कर बिस्तर पर लेटाया सासू माँ तुरन्त शर्बत बना कर लाई और मुझे देते हुए बोली"आजकल की लड़कियों में हिम्मत ही नही है जरा से चक्कर मे होश खो बैठी..एक हम थे.. ले ये शर्बत पी ले,ठीक लगेगा थोड़ा.."

और वो शर्बत की मिठास एक अजीब सी कड़वाहट में बदलती हुई हलक से उतरकर सीधे सीने में जा लगी..सीने में उठी हूल लाख छुपाने के बाद भी आँखों से झलक बाहर आ गयी क्योंकि मैं सासु माँ की तरह नही थी कि कोई बात चुभने पर उसे सीने में दफन कर सकूं..क्योंकि उनके अनुसार मुझे सिर्फ थोड़ा बहुत सुनना पड़ता है जबकि उन्हें तो सास, दादी सास, कुंवारी ननद की बाते भी सुननी पड़ती थी...तो फिर एक बार मैं उनसे ज्यादा लकी थी..

लेकिन ये खारा पानी मेरी ननद की आँखों से ना छुप सका.. उन्होंने सबको बाहर भेज मुझसे आँसुयो की वजह पूछी

और मैं एक साथ उन्हें सब बताती चली गईं साथ ही ये भी की ये सब बताते हुए मुझे एक तरह की ग्लानि महसूस हो रही है...क्योंकि कुछ भी हो एक तरीके से से सासु माँ साथ तो देती ही है,मदद भी करती है।।

बड़ी ननद कुछ देर सोचती रही

बोली"सुनो आशी मम्मी के साथ बहुत ही ज्यादतियां हुई है..उस समय वो सहती रही,डर कर जीती रही किसी से कुछ नही कह पाई।। ना पापा से ना अपने मायके में क्योंकि लड़की को कुछ कहने हक तब बिल्कुल ही नही था।।"

"अब वो सब बातें तुम्हे बताकर indirectly अपनी उन सालों की भड़ास निकालती है..एक तरफ उनका जमीर और तुमसे उनका प्यार तुम्हारी मदद करने से उन्हें रोक नही पाता"

दूसरी तरफ उनके अंदर की कुंठित महिला,जो कभी पलट कर गलत के खिलाफ बोल ना सकी, आज सबको खासकर तुमको ये जताना और बताना चाहती है कि वो किस मुश्किल स्थिति से गुजरी है.."

"मैं नहीं चाहती कि आगे चल कर तुम भी मम्मी का पार्ट 2 बन जाओ""

",जितना बनता है उतना करो..शरीर को टार्चर मत करो"

फिर नीतू यानी आशी की ननद ने राजन को बुलाया दोनो को कुछ समझाया और फिर उठी और बाहर निकल गईं...

छोटी ननद अचानक किसी कारण आ ना सकी सो घूमने का प्लान कैंसिल हो गया.. मैंने चैन की सांस ली क्योंकि मैं जाने की हालत में नही थी।।

सब लोग बाहर बैठे खाना खा रहे थे..अचानक ननद राजन से बोली"राजन पापा बता रहे थे शॉप ठीक नही चल रही..तुम सुबह 6 बजे निकलते हो रात 9 बजे घर मे घुसते हो..ना बीवी बच्चो को घुमाने का टाइम है ना बैठ कर बात करने का.."

"पापा के टाइम पर शॉप इतनी बढ़िया चलती थी..घर मे भी इतना टाइम देते थे..हमे घुमाते थे..घर बैठे आर्डर मिलते थे।।इतनी मेहनत के बाद भी घर मे इतने एक्टिव

रहते थे और एक तुम हो.."

"पुष्पा जी बोल उठी"कैसी बात करती है नीतू,पहले का और अब का क्या मुकाबला..कम्पटीशन देखा है आजकल बिज़नेस में..??"

"एक्टिव कहाँ से रहेगा बेचारा,सब चीज़ों में तो मिलावट है..फल सब्जी क्या कुछ भी खा लो शरीर मे जान ही नही आती.."

नीतू मुस्कुराते हुए बोली"ये बात तो सच है माँ.पीढ़ी दर पीढ़ी खान पान,वातावरण,माहौल सब चीज़ों में फर्क आया है..अब आप ही देखो जितनी शारीरिक दिक्कते आपको है दादी नानी को नही थी..जितनी भाभी को इस उम्र में है..आपको उस उम्र में नही थी.."

"मुझे भी यही लगता है इन सब चीज़ों का बहुत फर्क पड़ा है..हमसे बाद वाली पीढ़ी स्कूल टाइम में ही कमर दर्द सर ,दर्द बताने लगी"

"अब आप ही देखो आपके तीनो बच्चे नॉर्मल हुए भाभी के दोनो आपरेशन से..ऊपर से इतना पॉल्युशन,मिलावट भरी सब्जियां, फल,दूध ताकत शरीर को मिले कहाँ से..इसलिए अभी से हड्डियां जवाब दे गई..""

"आपके टाइम सर्वाइकल नाम की चिड़िया कितने लोगों ने सुनी थी..क्यो मम्मी सही कह रही हूँ ना??

"हम्म सही बात है"

"औऱ यही सब क्यो मम्मी..बच्चो की पढ़ाई में देख लो..हम लोगो के टाइम पर पढ़ाई कहाँ इतनी टफ थी..आजकल तो ये प्रोजेक्ट ,वो असाइनमेंट..आज इस फंक्शन की तैयारी, आज उसकी तैयारी..इतना कम्पटीशन भी नही था बच्चो में..अब देखो K G क्लास के बच्चे भी कितना प्रेशर लेते है"

"हम छोटे थे तो कैसे मेहमानों का आना जाना लगा रहता था आजकल टाइम नही किसी के पास,किसी के बच्चो की पढ़ाई, किसी की जॉब.."

"अब आप देखो जब आना जाना कम हो गया,लोग खास रिश्तेदारी में भी बड़े बुलावे पर जाते है..इसी हिसाब से लेना देना भी कम हो गया.. अब मिठाई मंगवा भी ले भाभी के यहाँ से तो बांटे किसके घर??"

"फिर भी नीतू पहले का जमाना मुश्किल था..लोग बहु को बहु समझ कर नही कामवाली समझ कर लाते थे..तुझे तो पता है तेरी दादी ने मेरे साथ.."

"वही तो माँ उन्होंने जो आपके साथ किया उसमे भाभी कहीं से भी सम्मिलित है??"

"ये कैसे हो सकता है??

"तो फिर उस चीज़ के ताने आप भाभी को थोड़े ही दे सकते हो"

आशी बोल उठी"नहीं दी मैं तो बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मेरी सास आज के जमाने की है..और जितना होता है मदद भी करती है"

"करनी पड़ती है वो तो मुझे..नही तो ये इतने से काम मे चक्कर खाकर गिर जाए..एक हम थे.."

आशी ने तुरंत पुष्पा जी के गाल पर चुटकी काटते हुए कहा"अरे आपसे मेरा क्या मुकाबला मम्मी जी आप तो उस जमाने की superwomen रही हो"

पुष्पा जी जैसे ही महसूस किया कि उनकी पटरी घूमकर फिर ""एक हम थे"" पर आ गयी है उन्होंने अपनी जीभ दांतो से काटी और पूरा परिवार उनकी इस हरकत पर खिलखिला कर हँस पड़ा...

रेखा तोमर स्वरचित एवं मौलिक


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