"अम्मा जी मम्मी कहाँ है"सुबह आँख खुलते ही मानवी ने पूछा
"अरे मेरी बेटी उठ गई"दादी ने गले लगाते हुए कहा
"मम्मी कहाँ है " मानवी की सुई वहीं अटकी थी
दादी समझ नही पा रही थी पोती को क्या समझाए।
"मेरी लाडो, एक बात बता तू रोज़ कन्हैया के सामने बैठ कर क्या मांगती है"?
"मैं रोज़ कन्हैया से कहती हूं कि प्लीज् लड्डू गोपाल एक भईया दे दो..मुझे खेलने के लिए,राखी बांधन लिए भईया चाहिए"
"हम्म देखो बेटा, भईया आएगा या बहन ये तो पता नही पर आज कन्हैया मम्मी को भाई या बहन देने वाले है"
"मतलब मम्मी कहाँ गई?डॉक्टर आंटी के पास?"
"हाँ बेटा,आंटी ने सुबह ही बुलाया था..पापा लेकर गए है मम्मी को"
ये सुन छोटू सी मानवी रोने लगी"अम्मा जी मुझे भी जाना है मम्मी के पास ,आज मम्मी ने मुझे जगाया भी नही,नहलाया भी नही,सेंडविच भी नही दिए और चली गई"
"बेटा, आज से ये सब काम मैं करूँगी"
"क्यों?"
"क्योंकि मम्मी अब आराम करेंगी"
"मम्मी घर कब आएंगी अम्मा जी"?
"बेटा वो..वो..मम्मी यहाँ नही आएंगी"
"मतलब?"
"मानवी वो हम लोग ऊपर रहते है ना तो जब आप हुए थे तो समय से पहले ही हो गए थे मतलब premature तो डॉक्टर को दिखाने के लिए रोज मम्मी को ऊपर नीचे जाने की वजह से बहुत दिक्कत हो गई थी"
"कैसी दिक्कत अम्मा"
"कैसे बताऊ?मम्मी को pus foramation हो गया था,फीवर हो गया था,तबियत इतनी ज्यादा खराब हुई कि मम्मी को दोबारा एडमिट करना पड़ा"
"मम्मी को बहुत दर्द हुआ होगा ना अम्मा"
"हाँ बेटा बहुत दर्द में थी आपकी मम्मी,इसलिए अबकी बार जब बेबी होगा ना तो.. तो..मम्मी 2 महीने नानी के यहाँ रहेंगी"
मानवी के मासूम से चेहरे पर हैरानी के साथ परेशानी के भाव दिखाई दिए
"क्यों, नानी के यहाँ क्यो?"
"बेटा क्योंकि आपको तो पता है मैं अभी अभी हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुई हूं,और कोई मदद करने वाला भी नही है,तो ऐसे में मैं आपकी मम्मी की और छोटे बेबी की देखभाल शायद ढंग से ना कर पाती"
"आपके नानू लोकल है तो मम्मी पापा ने decide किया कि वो 2 महीने वहीं रहेंगी,क्योंकि आपकी मामी भी है वहाँ पर
"तो मैं स्कूल कैसे जाऊंगी?"
"मतलब"?
"मतलब मैं मम्मी के पास रहूंगी तो स्कूल कैसे जाऊंगी"?
"मानवी आप मेरे पास रहोगी"
"नही मुझे मम्मी और भईया के पास रहना है"
"बेटा ये सम्भव नही है,हम मिलने जाएंगे ना बीच बीच मे मम्मी से"
"नही आप सब काम के लिए कामवाली रलो"
"बेटा कामवाली घर का काम कर सकती है,पर मम्मी के खाने पीने का,बेबी के साथ रात में जागना ,पूरा ध्यान रखना ये सब तो नानी या मैं ही कर सकते है"
"नही मैं स्कूल नही जाऊंगी, मुझे मम्मी के पास रहना है"
इतना कह मानवी सुबक सुबक रो पड़ी।
और उधर मानवी की मम्मी सुधा आपरेशन थिएटर में लेटी हुई एक नए जीवन को जन्म देने वाली थी,पिछली सर्जरी की कॉम्प्लिकेशन ने नार्मल डिलीवरी की उम्मीद खत्म कर दी थी।
और इस डिलीवरी में भी बहुत दिक्कते हो रही थी बेबी अंदर बुरी तरह चिपका था,gynae की बहुत कोशिश के बाद भी डिलीवर नही हो पा रही थी।
इस सब जद्दोजहद में सुधा को धीरे धीरे बेहोशी आने लगी,लगा जैसे दिल ने धड़कना बन्द कर दिया है, शरीर बेजान सा होने लगा..
फिर सुनाई दिया बच्चे का रुदन,डॉक्टर्स के साथ साथ सुधा ने भी राहत की सांस ली।
डॉक्टर्स ने बधाई दी"बेटा हुआ है"
सुधा में रोने की ताकत भी ना बची थी,पर फिर भी जाने क्यों दिल फूट फूट के रोने को किया।
आँखों के सामने अपनी मासूम सी मानवी का चेहरा घूम गया जो रोज लड्डू गोपाल से रो रो कर कहती थी प्लीज कान्हा एक भईया दे दो,मैं 6 ईयर की हो गई मुझे खेलने के लिए, राखी कलिए भईया देदो प्लीज्"
सुधा का कलेजा टूटने लगा बेटी को सीने से लगाने के लिए.. वो चाहती थी जल्द से जल्द बेटी को उसके लड्डू गोपाल से मिलवाना चाहती थी।
पूरा परिवार हॉस्पिटल में इक्कठा था,मानवी मम्मी से मिलने को बैचैन थी,पर गुस्सा भी थी ये सोचकर कि मम्मी भईया को लेकर उसके साथ नही रहेगी।
सब लोगो ने कमरे में प्रवेश किया पर सुधा की नजर तो अपनी बच्ची को ढूढं रही थी जो अपने पापा के पीछे छिपी हुई चली आ रही थी।।
सुधा ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया पर मानवी गुस्से में माँ के पास जाने को तैयार नही थी।
सब कुछ निपट गया और सुधा हॉस्पिटल से सीधा मायके चली गई।
वहाँ मानवी कभी अपने पापा और कभी दादी दादा के साथ आती।
धीरे धीरे वो नॉर्मल होने लगी पर भाई को गोद मे लिए बैठी रहती अपनी मम्मी से चिपकी रहती पर जब वापस जाने का टाइम होता वो फूट फूट कर रोने लगती।
उसकी ये स्थिति देख सुधा के लिए 2 महीनों का एक एक दिन काटना मुश्किल ही गया था।
शुरू में तो वो संडे को रुकती थी अपनी मम्मी के पास पर इत्तिफाक से मानवी के एग्जाम शुरू हो गए इसलिए संडे की छुट्टी में भी वो अपनी मम्मी के पास नही रह पा रही
थी,क्योंकि उसके ट्यूशन का नुकसान होता।
जिस दिन 2 महीने पूरे हुए मानवी से ज्यादा बैचैनी सुधा को थी।
जब सुधा घर पहुँची पूरा कमरा बैलून और छोटे छोटे फूलों और तितलियों से बने ग्रीटिंग कार्ड से भरा था।
पति ने मुस्कुरा कर कहा"कल एग्जाम खत्म होते ही पूरे दिन लगी रही इस सबमे"
सुधा ने मानवी को कस कर गले लगाया और बोली तेरी बहुत याद आई बाबू"दोनो रोने लगी तो पति ने टोका"बेटा मानवी, भईया कहेगा दीदी मम्मी दोनो रोंदू है,कहाँ फंस गया मैं"
"पापा आपको पता नही ये हम दोनो से ज्यादा रोंदू है..है ना.. मेरे लड्डू गोपाल"
सुधा हँस पड़ी,मानवी भईया के साथ बिजी हो गई।
सुधा के पति ने सुधा का हाथ पकड़ कर बोला"स्वागत है अपने घर मे सुधा,तुम्हे बहुत मिस किया"
"मैंने भी"
"मानवी बहुत परेशान रही इन दो महीनों में,अपनी तरफ से हमने कोई कसर छोड़ी उसे खुश रखने में,उसका मन लगाने में..पर माँ तो माँ है ना उसकी जगह कोई कैसे ले।
"एक बात बताऊ आपको"
"बताओ"
"जब ऑपेरशन थिएटर में मुझे ऐसा लगने लगा था कि प्राण निकलने वाले है,अब शायद मर जाऊंगी तो मेरे दिमाग मे सबसे पहले जानते है क्या ख्याल आया"
"क्या"?
"यही की अगर मैं मर गई तो आप भी दूसरी शादी कर लोगे, ये तो अभी पैदा हुआ है इसे तो मैं याद भी नही रहूंगी कैसी मम्मी.. कौन मम्मी.."
"पर मेरी बच्ची उसका क्या होगा"
इतना सुनते ही सुधा के पति जोर जोर से हँसने लगे और बोले"अब पक्का यकीन हो गया तुम पूरी फिल्मी हो मतलब ऑपरेशन थिएटर में तुमने मेरी दूसरी शादी भी करवा दी"
अब दोनो हँस रहे थे और देख रहे थे अपनी बच्ची को उसके लड्डू गोपाल के साथ..
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