आज सुनहरी देवी फिर परेशान सी होकर बैठी थी।। पोते-पोतियों के साथ खेल रही थी, लेकिन एक अनमनापन साफ दिखाई दे रहा था।।बहू और बेटे शायद बाजार गए थे, या कहीं ओर।।। तभी पड़ोस से निर्मला काकी आकर बैठी,और बातें शुरू हुई।।निर्मला काकी बोली
"और बहन जी बताइए कैसा चल रहा है सब, बहु शायद है नहीं घर पर।?।। सुनहरी देवी बोली" नहीं कहीं गई है किसी काम से, बेटा भी साथ है ..पता नहीं रोज-रोज का क्या काम निकल आता है बाजार से?
निर्मला काकी बोली "अरे बाजार में ऐसा कौन सा रोज का काम है एकबार लिस्ट बनाओ और ले आओ सामान"।।सुनहरी जी चुप रही बहु बेटे के लिए खुद चाहे कुछ भी बोल ले पर किसी दूसरे का बोलना बर्दाश्त ना होता था उनसे।।। ऐसा ही होता है, यदि परिवार के सामने कोई परिवार के सदस्य के बारे में कुछ बोले और आप उसे कोई भाव ना दो तो वह बात वही खत्म कर देता है।। अन्यथा एक बात से दो बात बनती चली जाती हैं जो कि परिवार की खुशियों के लिए अच्छी नहीं होती। ।
अजीब सी स्थिति थी सुनहरी देवी की उन्हें समझ ही नहीं आता था कि उन्हें अपने बच्चों से इतना प्यार है फिर उन्हीं से इतना कुढ़ती क्यो है?? अगर उन्हें कुछ हो तो,चिंता होती थी और कभी-कभी उन्हें लगता था कि वह ऐसा क्यों करते हैं वैसा क्यों करते हैं ?
वह स्वयं अपनी स्थिति को समझने में नाकाम थी।।सुनहरी देवी के पति की मृत्यु उनके बेटे की शादी के लगभग 1 साल बाद हो गई थी।।वह अपने बेटे पर डिपेंड नहीं थी।।उनकी पेंशन आती थी ।।वह सेवानिवृत्त सरकारी टीचर रह चुकी थी।।
तभी उनका बेटा विशाल और बहू वसुधा मार्केट से आ गए बहू ने आते ही सुनहरी देवी से कहा "
"मम्मी जी देखो आपके लिए ओट्स कुकीज और पोहा लाई हूं साथ ही खजूर भी लाई हूं"
यह सुनकर सुनहरी देवी कुछ मिसमिसाते हुए बोली "तूने कभी मुझे यह सब खाते हुए देखा है जो ले आई है कम से कम पूछ लेते तो यह पैसे तो बेकार ना जाते पैसे की वैल्यू ही नहीं है कमाने लगे हो तो"
वसुधा कुछ तीखा जवाब देने ही वाली थी कि विशाल ने इशारे से मना कर दिया वसुधा चुप हो गई, लेकिन सुनहरी देवी ने विशाल को इशारे करते हुए देख लिया तो वह और भी ज्यादा चिढ़ कर बोली "
"हां हां क्यों इशारे करता है चुप रहने के लिए,बोलने दे उसे...आजकल तो बहू को जरा सा कुछ बोलो तो बर्दाश्त ही नहीं होता.. एक हम थे जो घर में 10 लोगों की सुनते थे,और पलट कर जवाब भी नहीं देते थे..
विशाल यह सुनकर मुस्कुराया, लेकिन वसुधा सामान उठाकर बिना कुछ बोले अंदर चली गई।।वसुधा के अंदर जाने के बाद विशाल अपना किसी काम से बाहर चला गया।।बाहर बैठी सुनहरी देवी सोचने लगी ऐसा तो कुछ कहा नहीं था वसुधा ने तो मैंने इस प्रकार रियेक्ट क्यों किया?
अंदर वसुधा सोच रही थी ऐसा क्या कहा था? जो मम्मी जी ने इस तरीके से जवाब दिया.... इन दोनों से इतर विशाल एक अलग ही असमंजस की स्थिति में था ना मां से कुछ कह पाता ना पत्नी से।।। वह जानता था वसुधा 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' और 'कहानी घर घर की' बहुओं जैसी नहीं है वह एक ठीक-ठाक बहू है।। घर का ध्यान रखती है बच्चों का ध्यान रखती है परिवार का ध्यान रखती है,बस वह कोई बात बर्दाश्त नहीं कर पाती और फटाक से जवाब दे देती है।। यह बात सुनहरी देवी को पसंद नहीं वह चाहती हैं जैसे वह चुप रही वसुधा भी चुप रहे।।। विशाल की समझ में यह भी नहीं आता था कि मां इतना प्यार करती है तो अचानक ऐसे क्यों बदल जाती है ? जब विशाल लौट कर आया तो वसुधा बिस्तर लगा रही थी।।विशाल ने वसुधा से ही सबसे पहले बात करने के बारे में सोचा उसने जैसे ही बोला
" सुनो वसुधा मुझे बात करनी है "
वसुधा फट पड़ी बोली "यार मुझे समझ नहीं आता मम्मी जी की दिक्कत क्या है यह अचानक से पल में तोला और पल में माशा क्यों हो जाती है मेरी समझ से बाहर है "
विशाल बोला " यह बात इस तरह हल नही होगी जब तक आमने सामने बैठकर बात न करे,वरना स्थिति बिगड़ जाएगी" रात को दोनों बच्चों के सोने के बाद विशाल और वसुधा सुनहरी देवी के कमरे में गए।। सुनहरी देवी तब रामायण पढ़ रही थी।।वसुधा जाकर बिस्तर के एक किनारे पर बैठ गई,और विशाल ने माँ के पैरों के पास बैठकर बात करनी शुरू की।।
"मां कुछ बात करनी है मुझे, तुम्हारी परेशानी क्या है मां ?क्यों ऐसे रिएक्ट करती हो ?" यह सुनते ही सुनहरी देवी और भड़क गई बोली, "किसके कहने में आकर बोल रहा है यह सब ?ऐसा तो मैंने कोई बात बोली भी नहीं थी तुम क्या साबित करना चाहते हो कि मैं घर में कलेश करती हूं ?" "ऐसा कुछ नहीं है मैं कोई बच्चा नही हु.. की कोई कुछ भी बोले और मैं मान लु.. वो भी आपके बारे में ? विश्वास नही अपनी परवरिश पर? बताओ तो कि बात क्या है आप अचानक से इतना गुस्सा क्यों हो जाते हो ?" सुनहरी देवी बोली "क्या फर्क पड़ता है मेरे गुस्सा करने से ?अब तो तुम सेल्फ डिपेंड हो सब काम खुद ही करते हो ,पूरा घर संभाल रखा है मुझ बुढ़िया की क्या जरूरत है? ना कुछ पूछा ... ना कुछ काम बताओ ...मैं किसी लायक कहां रही अब ?...कभी वह भी जमाना था कि जॉब के साथ-साथ घर भी अच्छे से संभालती थी ..सारा बाहर का काम भी खुद करती थी ...लेकिन अब तो मुझे किसी भी लायक नहीं समझते हो तुम...ना कुछ पूछते हो ,ना कुछ बताते हो ,ना कुछ कहते हो कि मां यह लो यह काम तुम से अच्छा कोई नहीं कर सकता "
यह सुनते ही विशाल की समझ में कुछ कुछ चीजें आ गई।।वसुधा भी मुस्कुराने लगी, धीरे धीरे सुनहरी देवी ने सब उलझने बताई अपनी।। तो सारी परेशानी यह थी।।
दरअसल हुआ यह कि सुनहरी देवी अपने समय में जॉब और परिवार को एक सुपर वुमन की तरह संभालती थी।।चाहे घर में एक से एक खाना बनाना हो या घर का खर्चा उठाना हो या बाहर के काम करने हैं जैसे राशन लाना, सब्जी लाना लेकिन पिता की मृत्यु के बाद विशाल ने ज्यादा से ज्यादा कोशिश यह कि उनकी मां को आराम मिले और इस वजह से उन्होंने सुनहरी जी से सारे काम धीरे-धीरे ले लिए।।। लेकिन वसुधा जी ने इस बात को इस तरीके से लिया कि घर में उनकी आवश्यकता ही नहीं है।। या बेटी और बहू यह जताना चाहते हैं कि उनके बगैर भी सब काम हो सकते हैं।।जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था जो कोशिश वसुधा और विशाल इन को खुश करने के लिए कर रहे थे दरअसल सुनहरी देवी को वही बात आत्मसम्मान पर प्रहार लग रही थी।।।
उन्हें यह चीज बर्दाश्त नहीं थी कि राशन लाना सब्जी लाना दूध लाना छोटी छोटी चीजें बनाना किसी भी काम के लिए उनसे नहीं कहा जाता था।। सबसे बड़ी परेशानी की वजह बनी विशाल का उनसे किसी भी चीज के लिए फरमाइश ना करना वह सोचती कि कभी समय था की विशाल मां की बनी चाय के अलावा किसी के हाथ की चाय नहीं पीता था।। मां के हाथ से बनी मूंग की बड़ी की इतनी तारीफ करता था,कि कभी कोई और बनाता तो वह खाता ही नहीं था।। लेकिन अब वह उन चीजों की फरमाइश अपनी मां से करना भूल गया था।।ऐसा सुनहरी देवी को लगा, विशाल का सोचना सिर्फ यह था कि वह अपनी मां को ज्यादा से ज्यादा आराम देना चाहता था।।और यही एक छोटी सी गलतफहमी परिवार में विवाद की जड़ बन रही थी अब वसुधा और विशाल को यह चीज समझ में आ गई।।।
उनकी समझ में यह भी आ गया कि प्रत्येक बुजुर्ग जो अपने जीवन काल में बहुत संघर्ष कर चुका हो, या बहुत सर्वगुन सम्पन्न रह चुका हो, वह ज्यादा उम्र होने पर भी बैठना नहीं चाहता।। उसे हर समय यह बात खलती है कि तब वह इतना कुछ करता था, पर अब कुछ नहीं कर रहा।।। एक बात और उन्हें खाये जा रही थी कि विशाल जो बनता था जैसा बनता था खा लेता था जबकि पहले जब तक खाना उसके हिसाब से ना हो तो नखरे दिखाता था.. लेकिन अब बहुत सी चीज़ों को लेकर कोम्प्रोमाईज़ करने लगा है।।
इसके लिए विशाल ने उन्हें समझाया कि "माँ अब एक पिता और पति होकर मैं एक बेटे की तरह बर्ताव कैसे करूँ?मेरी उम्र बढ़ी है,जिम्मेदारी बढ़ी है।।अब जो चीज़े आपके सामने करता था वही चीज़े बीवी और बच्चो के सामने करता हुआ अच्छा लगूंगा।।कुछ समय बाद आप ही टोकने लगती की बड़ा हो गया है अब ये बचकाना हरकते छोड़ दे।
माँ के सामने बेटे वाले नखरे और पत्नी के सामने पति वाले नखरे ही अच्छे लगते है।।बताओ गलत बोल रहा हु तो।।आखिरकार सुनहरी देवी को समझ आया कि उनकी झुंझलाहट का कारण वह खुद थी कोई और नही।। यह सोचकर वसुधा और विशाल ने एक उपाय सोचा... अगले दिन सुबह विशाल सोकर उठा तो वसुधा जी नहा कर बाहर धूप में बैठी थी। विशाल आकर उनके गले में पीछे से बाहें डालकर बोला "मां आपके हाथ की चाय पिए बहुत समय हो गया ऐसा लग रहा है अच्छी चाय का स्वाद ही भूल गया हूं प्लीज मेरे लिए एक कप चाय बना दोगी?"यह सुनकर सुनहरी देवी खिल उठी बोली "अरे चाय तो वसुधा भी बहुत बढ़िया बनाती है पर तुझे मेरे हाथ की पीनी है तो कोई बात नहीं मैं बना देती हूं " तभी वसुधा आई बोली "मम्मी जी मुझे बिरयानी बनानी नहीं आती ,लेकिन खानी बहुत पसंद है क्या आप मेरे लिए आज मुझे बिरयानी बनाना बताओगे?" सुनहरी देवी बोली "हां हां क्यों नहीं अभी विशाल के जाने के बाद बच्चों को स्कूल भेजकर आज हम दोनों साथ साथ किचन में बिरयानी स्पेशल बनाएंगे ...देखना मेरी बिरयानी बड़े-बड़े शेफ को मात कर देगी"
यह सुनकर तीनो खिलखिलाकर हँस पड़े।। और एक ऐसा छोटा सा विवाद जो धीरे-धीरे बड़ा होता जा रहा था।।वही का वही समाप्त हो गया।।
रेखा तोमर
मौलिक
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