सबकी नजरों में वो एब्नॉर्मल थी..
वो मंदबुद्धि नही थी, हाथ पैर भी सलामत थे फिर..सड़क पर घूमती गाय, सांड और कुत्ते उसे अपने से लगते थे।
उन्हें नमस्ते करो वो सिर्फ घूरकर देखती और चुप रह जाती, खाना खाने को बोलो तो खा लेती वरना पूरा दिन भूखे रहती..
एब्नॉर्मल तो थी पर कैसे थी और क्यों थी कोईं नही जानता..बस इतना सुना था कि तीन साल की उम्र में मरा जान लोग श्मशान लेकर चल दिए थे..किंतु प्राण तो वापस आ गए पर जीवन नही..
तबसे ऐसी ही है..घर के बाहर बैठ सड़क पर घूमते गाय, सांड ,कुत्तों को अपने हिस्से का भोजन देना पिछले तीन साल से जारी था।
माँ की ममता बच्ची को भूखा ना देख पाती तो खुद ही जानवरो के हिस्से की रोटी सेक बेटी को दे देती..पर बेटी के चेहरे पर कृतज्ञता का नामोनिशान ना दिखता..
मोहल्ले की तरफ से विरोध के स्वर उठने लगे..
"ठकुराइन बिटिया को समझाओ, गली में जानवरों का जमावड़ा लगने लगा है
पर समझाए तो उसे जो बात को सुनकर कुछ जवाब दे,
धीरे-धीरे सारे मोहल्ले में उसे जानवरों की अम्मा कहा जाने लगा
मां की तरह पूरे दिन सड़क पर जानवरों के पीछे पीछे घूमती,उनकी सेहत का ध्यान रखती.. उसी दौरान एक बंद पड़ी दुकान के सामने लोगों ने कचरा डाला शुरु किया,जब सब लोग अपना कचरा पॉलिथीन भर भर वहाँ डालने लगे तो आवारा घूमते उसके बच्चो को भोजन का नया ठिकाना मिल गया।
कुत्ते महावारी के गंदे कपड़े और गाय पॉलिथीन में बंधे कचरे को टटोलने लगी..
आखिर दो रोटी से कितना पेट भरता उनका..अपने बालको को ऐसे देख नही पाती वो..
कचरा खाती गायों के मुंह से पॉलिथीन छीन लेती, गंदगी खाते कुत्तों को दुत्कार देती..मोहल्ले के लोगों ने नया नाम रखा 'जानवरों की पागल अम्मा'कचरा उठा उठा दूसरी जगह ले जाने लगी... खुद कचरा बन गई थी।
पर अपने जानवरों को अपने बच्चों को गंदगी से दूर रखने की भरसक कोशिश करने लगी.. कुछ सामाजिक लोग आगे आएं,जानवरों की पागल अम्मा में उन्हे वो समझदारी दिखी जिसकी उम्मीद उन्हें समझदारी भरे समाज से थी।
नौजवानों ने एक ग्रुप बनाया मोहल्ले में घूमने लगे "प्लीज अंकल प्लीज आंटी वहां कचरा मत डालिए,देखिए ना वो आंटी कैसे कचरे की सफाई में लगी रहती हैं?
धीरे-धीरे मोहल्ले वालों को समझ में आने लगा.. लोगों ने गीला कचरा अलग करना शुरु कर दिया।
गीले कचरे को भी भागो में बांट कर छोटे छोटे टब में उसी कचरे की जगह पर रख दिया जाता।
जहां से गाय ,सांड ,कुत्ते वह सब खाने लगे.. गड्ढा खोदा गया इसमें सूखा कचरा डाला जाने लगा।जानवरों के पागल अम्मा खुश थी बहुत खुश एक दिन अचानक रोती हुई पछाड़ खाती सड़क पर घूम रही थी सुनने में आया किसी ने गीले कचरे में प्रयोग की हुई सिरिंज डाल दी थी, जो उसकी प्यारी गाय कादंबिनी के पेट में चली गई थी बहुत दिनों तक परेशान रहने के बाद एक दिन कादंबिनी ने दम तोड़ दिया।
वह बहुत रोई..उसको रोता देख मोहल्ले की आंखों से आंसू बह निकले..
जन जागरण तेज हो गया बात मोहल्ले से होती हुई दूसरे मोहल्ले दूसरे मोहल्ले से होती हुई शहर में फैल गई।
सभी ध्यान रखने लगे कैसे शहर को साफ रखते हुए आवारा जानवरो का ध्यान रखा जाए।
पर जानवरों की पागल अम्मा अब गुमसुम हो चुकी थी उसकी पागलों वाली हरकत ने पूरा शहर बदल दिया था।
कुछ समय बाद अचानक अम्मा ने खाना बंद कर दिया धीरे-धीरे सेहत गिरने लगी और एक दिन उसने दम तोड़ दिया।
जब उसकी मौत की खबर फैली तो पागल कहने वाला आधा शहर उस की अंतिम यात्रा में जुड़ा था।
लोग तरह तरह की बातें करते हैं
"भाई साहब देवी थी इस शहर को सुधारने के लिए अवतार लेकर आई थी"
" अरे मैं तो तभी कहता था इंसानो से बात नहीं करती थी.. साक्षात कन्हइया ने इन बेजुबान जीवो के लिए भेजा था उसको "
सच क्या था यह तो वही जानती थी पर आज उसी की बदौलत मेरा आधा शहर चमकता है।
सड़कों पर कुत्ते और गाय आज भी आवारा घुमते है पर उनकी सेहत देख पालतू जानवर भी शर्मा जाए।
जज
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