कुछ तेरी कुछ मेरी चलती
तब ना बिल्कुल बात बिगड़ती।
खामी ही क्या है बस मुझमें?
कुछ तेरी कुछ मेरी गलती
कौन यहाँ सम्पूर्ण भला है?
जिससे कुछ ना खता हुई हो।
हम दोनों भी खास नही है
तभी हमारी फितरत मिलती।
रूठ अगर तुम जाओगी तो
तुम बिन कह दो कैसे जीऊंगा,
लफ़्ज़ों से जो ज़ख्म दिए है
सुलूक से वो जख्म भरूँगा
कहने को तो कह दूंगा मैं,
तुम से ही तो चूक हुई है।
पर ऐसे इल्जाम लगाकर
इस दुनिया मे कहाँ रहूंगा।
सोच रहा हूँ जीवनसाथी,
साथ साथ ही तो चलते है।
साथ साथ ही बनते है,
कुछ घटते है और कुछ ढलते है।
चलो आज कुछ ऐसा करले
आधे आधे हो जाते है।
अपनी अपनी शख्सियत: का
बंटवारा सा कर लेते है।
धीरे से,और इश्क में भरके
एक दूजे से गिला करेंगे।
अपने अपने लहजो से यूँ,
एक दूजे के दोष ढकेंगे।
तुम मेरी आँखे बन जाना
मैं बनू तुम्हारी मूक ज़बान
एक दूजे से कह लेंगे सब
दुनिया जहां से नही कहेंगे।
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