गद्दार

गलतफहमी, हमेशा गलत ही होती है।

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 23 Jan, 2020 | 1 min read

सामने शीबा के घर कोई आया हुआ था।दाढ़ी,गोल टोपी पहने रोज ना जाने बड़ा सा बैग लिए कहाँ निकलता था।

उसे देख मेरा मन विष से भर उठता"गद्दार लोग, जरूर की आतंकवादी गुट का सदस्य होगा..शक्ल देखो कितनी शरीफ है" उसे देखते ही ये बड़बड़ाहट मेरे मन से होते हुए मुँह से निकक जाती।

15 अगस्त को मेरी नजरें उसकी दिनचर्या, हावभाव और हरकतों पर और ज्यादा गड़ गई थी।

अपनी आँखों की दूरबीन मैं बार बार सामने वाले घर की तरफ घुमा देती।

वो कुछ भागदौड़ में लगा था, शक गहरा गया तभी शीबा ने आकर मुझे अपने घर invite किया।

और उस लड़के की तरफ इशारा करके बोली"सुन ये मेरे चचाज़ाद भाई,अनाथो को पढ़ाते है,आज 15 अगस्त पर उन अनाथ बच्चो को बुलाया है इन्होंने, सारी तैयारी खुद की है सुबह से...और मैं देख रही थी हाथ मे तिरंगा पकड़े,सावधान की मुद्रा मे सीना ताने आँखों मे जोश लिए राष्ट्रगान गाते हुए उसे..जिसे मैंने बिना सबूतों ओर गवाहों के अपने मन में गद्दार की उपाधि दे दी थी।औऱ मैं देशभक्त तिरंगे से नजर नही मिला पाई पाई।नपाई।।

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