अंधेरा था।बहुत कोशिश करने पर भी उसे नींद नही आ रही थी।कुछ दिन से बहुत कुछ चल रहा था जो उसे सोने नही दे रहा था।एक समय था जब वो बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता,रात पल मे 'छू' हो जाती।
पर बारिश से भीगी ये रात बहुत लम्बी थी ,शायद। नींद,उससे नाराज़ थी,शायद।
"नींद ही क्या, आज-कल सब नाराज़ है उससे"!
उसे याद है, कि कैसे, अपने सपनों के लिऐ ,माँ-बाबा को छोड़ वो यहा चला आया था,अकेले रहने। कैसे, इतनी मेहनत कर एक जगह बना ली थी उसने ,कम्पनी और सभी के दिलो में।वो समय कितना अच्छा था।सब साथ थे उसके।
आज पाँच साल हो गऐ हैं। काफ़ी बदल गया है सब।
काम करते-करते, ना जाने कब वो अपने अकेलेपन के खोल मे घुस गया।सारे रिश्ते छूटते रहे।माँ-बाबा से बात किऐ भी कितना समय हो गया है उसे।वो लोग तो कई बार आते हैं उससे मिलने।
माँ जब भी आती हैं, उसके बिस्तर को देख उसे टोक देती हैं,"पूरब की ओर पैर नही होना चाहिऐ!", वो हर बार उनकी बात टाल देता है।
पर ना जाने क्यूँ ,अचानक, माँ की वो बात उसे ज़रूरी लगी!
बारिश अब हल्की हो गयी थी।दूर किसी चाय की दुकान से रेडियो की धीमी आवाज़ आना शुरू हो गयी थी।
खिड़की पर बैठी गौरैया की आवाज़ सुन वो उठ बैठा।उ सने जल्दि से अपना सिर पूरब की ओर कर लिया!
क्षितिज पर हल्की लालिमा छाने लगी थी।उसने अपनी आँखे बंद कर ली। "सूरज अभी उगा नही",ये सोच कर उसे खुशी हुई।ना जाने कब वो गहरी नींद मे चला गया!
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत बेहतरीन
Nice
वाह
धन्यवाद आप सबका!
Please Login or Create a free account to comment.