ज्योति, अपने कमरे में अनमनी सी बैठी, सामने पड़े फूलों के गुलदस्ते को घूरती ही जा रही थी, दिमाग मे चल रहा था विचारों का बवंडर---आज 2 फरवरी थी, योगेश होता तो आज उसकी शादी के 30वर्ष पूर्ण हो गए होते। क्या वो दुखी थी, या खुश या तटस्थ? कुछ भी महसूस नही कर पा रही थी, एक स्कूल मास्टर की बेटी, छोटे से मोहल्ले में पढ़ी ,बढ़ी ज्योति---
जहां बेटियों को पढ़ाया ही इस लिए जाता था कि अच्छा पढ़ा लिखा वर और घर मिले और विदा होते समय नसीहतों का पहाड़,अब दो घरों की मर्यादा तुम्हारे हाथ और यूं महसूस होता ज्योति को जैसे चेतावनी--- कि बेटियां डोली में विदा होती हैं और अर्थी में----
जाने क्या अटकने लगा था उसके गले मे,योगेश से उसकी शादी मानो कर्तव्य निर्वहन ही थी जिसे उसने प्राण-प्रण से निभाने की चेष्टा की, कही कोई चूक न हो जाये वाला भाव,प्रसन्न दिखने में भी---, न जाने कितनी 2 फरवरी आईं और निकल गई, साल दर साल--- मन न मिलने थे न मिले।
प्यार के प्रमाण के रूप में एक बेटी थी, भावना, जो जैसे जैसे बड़ी हुई एक मित्र की कमी पूरी होती गई।
उच्च शिक्षित, सॉफ्टवेयर इंजीनियर बेटी की भी शादी योगेश ने अपनी समझ से एक योग्य वर से की थी।
फिर तेजी से घूमता घटनाक्रम--,ज्यों आंधी---,जिस घर से उसकी अर्थी निकलनी थी, कोविड की वजह से योगेश की निकली थी।
भावना एक वर्ष भी विवाह को निभा न सकी, या एक नालायक व्यक्ति के साथ उसका रहना असंभव था, गर्भावस्था में ही वापस,तलाक, उफ्फ! एक बेटे का होना और तारीख वही 2 फरवरी---
शुभ 2 वर्ष का हो गया था आज,और ज्योति के विचारों का तारतम्य तोड़ते हुए शुभ की आवाज सुनाई दे रही थी,"नानी कहाँ हो?जल्दी आओ, केक काटना है"। बच्चों के हैप्पी बर्थडे का शोर और तालियां बजाती ज्योति। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे खोटी दो फरवरी फिर शुभ हो उठी।
रश्मि सिन्हा(पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.