उस स्याह काली रात को अपने रंग में रंग दिया,
ना मैं सोया और ना मैंने अक्षरों के सोने दिया,
किसी पन्नें पर सुंदर सा साज़ लिखा,
किसी पन्नें पर गुस्से का अंजाम लिखा,
ऐसे ही पूरी रात गुज़ार दी हमने,
लिखा बहुत कुछ और पढ़ने के लिए अपने जैसों को ही बुला लिया,
कागज़ को सब पता है कि उस पर क्या लिखा गया है,
बोल सकता तो कहता लिखने वाले ने केवल उसे ज़ाया किया है,
अपनी आपबीती लिख बाज़ार में उतार देते है,
लाखों कमाते है ऐसे लोग जो खुद के एहसास को दाव पर लगा देते है,
जिस दिन सामना होता है गैरत से उस दिन हैरत में आ जाते है,
औरों को बेवफा कहने वाले खुद को कहाँ नीलाम कर आते है,
तालियों की गूँज में खुद की चीख को भूला दिया,
स्याही सो बिखरी सो बिखरी इंसान ने खुद को कितना नीचे गिरे दिया.
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