भीड़ है, तन्हाई भी, उदास मन है तो मुस्कुराते चेहरे भी,
सब कठिन से कठिन बनने की होड़ में लगे है,
बेश्किमती से अनमोल तक का सफर तय करने में लगे है,
सब अपने हिसाब से समाज को ढ़ालने में लगे हुए है,
सही - गलत का नज़रिया कहीं बचा ही नहीं,
मुड़ और माहौल पर आके बात टिकी रह गई,
समय के हिसाब से सब बदल जाते है यहाँ,
पहले कुछ कहते है और बाद में कुछ और ही हो जाते है,
बदलाव की बात तो करते है मगर बदलना नहीं चाहते,
कपड़े बदले जाते है यहाँ, सोच में कोई फेरबदल नहीं चाहते,
मौसम के बदलने की राह देखने वाले बातें तो खूब बनाते है,
मगर मौसम को देख कर भी खुद को सुधार नहीं पाते.
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