ना जाने कौन सी बात मेरी कमज़ोरी की निशानी बन गई,
ना जाने किस वक्त लोगो को मेरी आँखों मे ड़र दिख गया,
जिन निडर आँखों में मेरे चमकते सपने ना दिखे,
उन आँखों में मेरा अचानक चौकना दिख गया,
अपनी खौफनाक कहानी कहीं और सुनाओ,
जो धबराते है उन्हें ड़राओ,
मुझे ना बताओ कि काली स्याह रात कैसी होती हैं,
ना जताओ की कुदरती चाँदनी रात सिर्फ कुछ लोगों की सगी होती हैं,
लाओ मेरा मखमली दुपट्टा थोड़ निर्भय हो कर आसमान का मज़ा तो लो लूँ,
बाहे फैला थोड़े चाँद - सितारो से दमन तो भर लूँ,
लफ्ज़ोंं मे प्यार और व्यकतित्व में शराफत घोल रखी हैं,
माना की मैं मौजी हूँ बहुत मगर खुद में मैने नम्रता की पहचान घोल रखी हैं,
चीखना - चिल्लाना मेरा शौक नही मजबूरी हैं,
ना बोलो तो सब कमज़ोर समझ लेते हैं,
इसलिए उन लोगो को अपनी बात से लाजवाब करना भी तो ज़रूरी हैं.
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