ग़म में डूबे है मगर कलम से खुशियां लिखते है,
टूटे दिल से अटूट रिश्तों की कहानी लिखते है,
अलग ज़मीन है उनकी तन्हा बस्ती में रहते है,
भीड़ जाती है उन्हें सुनने,
वो जहाँ बैठ जाएं महफिल वहीं सजती है,
बेसुकून अल्फाज़ों में सुकून मिलता है,
लिखता तो शायर है मगर समझ कोई और ही रहा है,
तजुर्बेंकार शायर अनाड़ी को होशियार बना रहा है,
तू सुन ले किस राह पर है तू,
और तेरे साथ क्या होने वाला है,
ना पैसा मिलता है लिखने का,
ना वाह - वाही पर कुछ हाथ में आता है,
एक बाबा वो होते है जो छोला लिए घूमते है,
एक ऐ फकीर है जो शब्दों से मोती बिखेरने के बावजूद,
मोल के लिए तरसता है.
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