अपनी शर्तों पर जीता है,
खुद की मर्ज़ी से छुपता और निकलता है,
सफेद गोलाकार का मालिक वो बड़ी दिलचस्पी से सबको निहारता है,
कुछ छुपा नहीं उससे वो सबके मंसूबें जानता है,
कभी आधा तो कभी पूरा होता है,
कभी पेड़ों के पीछे से झांकता तो कभी इमारतों में ढ़लता है,
कभी जल्दी आता है तो कभी इंतज़ार करवाता है,
इंसानों से ज़्यादा नखरे है उसके जब मिलने की बेसब्री हो,
तभी बादलों के पीछे छुप जाता है.
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