मैं साझेदार..................

ना हुड़क हूँ, ना लत हूँ, मैं तो अकेलेपन का मित्र हूँ.

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rashi sharma
rashi sharma 15 Nov, 2022 | 0 mins read

मैं साझेदार हूँ ग़म का, तन्हाई का, खाली समय का,

मैं हक़दार हूँ यूँ ही बिखर जाने और गुस्से से टूट जाने का,

हैरत है कि मुझे सब जानते है,

देश हो या विदेश मेरे लिए पागल से हो जाते है,


मेरी दोस्ती सुस्ती मिटाती है,

मेरी चाह लोगों को लोगों से मिलवाती है,

मेरी तरक्की का आयाम तो देखों पहले दूध के साथ,

फिर सादे पानी में मेरा कमाल तो देखों,


हूँ तो मैं साझेदार मगर लत बन गया हूँ,

नशीला नहीं मैं फिर भी आदत बन गया हूँ,

मेरे बिना बातें सुनी हो जाती है,

खामोशी को भी नींद कहाँ आती है.

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rashi sharma

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