संतों ने इसको विकसित किया, पुराने लोगों ने भी इसका अभ्यास किया,
एकग्रता और साधना से इसको जोड़ दिया, इच्छाओं की पूर्ति के लिए जलसमाधि का इस्तेमाल किया,
वो युग कुछ और ही था, जब लोग जलसमाधि लगाते थे, सहनशील और शांत थे बहुत तभी तो कई वर्षों तक उसमें निवास करते थे,
आज फिर से जलसमाधि के द्रश्य देखें जा रहे है, फर्क इतना है कि अब इंसान नहीं बल्कि शहर जनसमाधि लगाते जा रहे है,
पहले इंसान लगाते थे जलसमाधि और अब इंसान की वजह से शहर डूबते जा रहे है,
जहाँ भी देखों वहां जल सैलाब नज़र आ रहा है, घर तो तबाह हो गए,
रास्ता भी धुंधलाता जा रहा है, यूँ लगता है जैसे यहाँ हमेशा से ही तालाब ही थे,
नया जन्म हुआ है संसार का शहर तो पिछले जन्म में थे,
गुस्सा भी है और उदासी भी शिकवा किस से करें,
प्राक्रतिक आपदा सुनती ही नहीं,
मदद के लिए मुहिम शुरू हो गई, कब मिलेगी राहत कुछ पता नहीं,
बिमारियों ने भी शहर में घर कर लिया है,
सैलाब से बच भी जाएं तो क्या, बिमारियों से बच ना जाएं कहीं,
यूँ लगता है पानी की आफत इतनी जल्दी टलने वाली नहीं,
ऊपर से मौसम विभाग के ड़राने वाले अनुमान शांत होने वाले नहीं.
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