सुन्न है हम रात भी अपने शबाब पर है,
ना कोई वहम ना कोई ड़र ऐ तो मेरे अंदर का मौन है,
शांत गली में मेरे सिवा और कोई नहीं,
ऊपर खुदा और नीचे में तीसरा और कोई नहीं......................
सुबह से ज़्यादा रात का नज़ारा आकर्षक लगता है,
झूठे है वो लोग जो कहते है रात में उनको ड़र लगता है,
बंद कमरे और जगमगाती रोशनी में रहने वालो को मालूम ही नहीं,
रात में तारा बल्ब और चाँद आतिशबाज़ी जैसी रोशनी देता है...........................
सूनसान गली से ना ड़र बना ले उसे अपना दोस्त, फिर उससे बात कर,
उसका तजुर्बा हमें ड़र से बचा लेगा,
जिस परछाई से ड़रते है हम वो उससे भी हमें बचा लेगा................
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