कुछ ना हो कर भी इसने बहुत कुछ बना दिया,
डिग्री दे कर इसने समाज के काबिल बना दिया,
आत्मविशास भी सिर चढ़ कर बोल रहा है,
शिक्षा ने हमें हमसे मिलवाया है,
साक्षरता दर्पण है समझदारी का, सूझ - बूझ और तालमेल का,
सुना है पढ़े लिखों का समझाना काफी सरल होता है,
शायद ऐ कहने वाले भूल गए कि बहस करना भी इन्हें खूब आता है,
तथ्यों के साथ जब पढ़ाकू मैदान में आता है,
सच मानों अकेले में भी इंसान सिर छुपाता है,
पहनावे से दूर शिक्षा ने ज्ञान का प्रसार किया है,
भेदभाव नहीं किया इसने तो सब में बराबर खुद को बांटा है,
माना की मेहनती लोगों के पास ऐ ज़्यादा ठहरती है,
क्योंकि बुद्धिमानों के पास अकड़ कुर्सी जमाए बैठी है.
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