दर्पण के सामने इठलाता है, कभी उसी से शर्माता है,
देखते रहते है खुद को इस कदर कि सीशा भी कई बार परेशान हो जाता है,
गुरूर भी है और सुन्दरता का सुरूर भी, इतराते फिरते है जैसे हम जैसा कोई नहीं,
कोई झूठ भी कहता है तो सच लगता है,
इस दौर में खुद पर ही घमण्ड़ होता है,
सौंदर्य को भी पता है कि एक दिन उसकी नज़ाकत ढ़ल जाएगी,
झुर्रियों का आगमन होगा और नज़र भी धीमी पड़ जाएगी,
लेकिन तब तक वो जीना चाहती है, हर शय पर अपनी परछाई चाहती है,
ख्वाहिश है उसकी विश्व में सुन्दरता का खिताब पाने की,
कुछ समय के लिए ही सही इतिहास में नाम दर्ज कराने की.
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