छुक -छुक करती है ऐ गाड़ी, धुआँ उड़ाती है ऐ गाड़ी,
वादियों की सैर कराती है, दिखाती है खुद का देश हमें,
प्रदेश पार करवाती है, मिट्टी से जुड़ी ऐ उसी की कहानी कहती है,
गाँव - गाँव कस्बों को जोड़ती ऐ इकलौती पटरी है,
फर्क तो है पहले और अब की यात्रा में, भीड़ तो वही है बस कायाकल्प हुआ है,
लकड़ी की पटरी की जगह, लौहे ने ले ली, छोटी सी टिकट की जगह,
सफेद बड़ी सिलिप ने ले ली, अंदर भी साटों में बदलाव हुआ है,
कई ट्रेनों से पुरानी चुभती लकड़ी का डिब्बा गायब हो गया,
अब सवारी आरामदायक सफर का मज़ा लेती है,
खूब करती है पड़ोसी से बातें और खिड़की से खेतों का आनंद लेती है,
जो ना बदला वो उसकी चलने की आवाज़ है, घोषणा में भी उसका गूंजता इतिहास है,
कुल्हड़ की जगह कागज़ और फाईबर के छोटे गिलास ने ले ली,
स्टेशन ने भी दिनों - दिन खूब तरक्की कर ली,
कुछ भी कहो भूत और वर्तमान दोनों से रेल और पटरी ने खूब ताल - मेल बिठाया है,
सांसें है ऐ कई शहरो की जिसने लोगों को इसके स्थान तक पहुँचाया है.
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