मैं पानी मेरा काम ही है बहना,
चट्टानों से, गलियों से, नदी से होकर सागर में मिलना,
ना ठहरती हूँ ना रूकती हूँ,
बस कल - कल बहती रहती हूँ,
कभी किसी की प्यास बुझती तो कभी खेतों में पहुँचती हूँ,
ख्याल रखती हूँ अपनी धरती और अपने लोगों का मैं,
कभी - कभी तो पड़ोसी देश में भी जाती हूँ,
परवाह है मुझे दुनिया की,
ऐसे ही थोड़ी जीवनदायनी कहलाती हूँ,
मेरे बिना जी नहीं सकते ऐ सब जानते है,
फिर भी मुझे बचाने की खातिर कब सामने आते है,
गंगा में पाप धोने जाते है और वहां पर मुझे गंदा ही छोड़ आते है,
दिमाग में रखते है परवाह मेरी,
हक़िकत में कहाँ दर्शाते है,
कितनी दफा लहरों के सहारे मैनें कूड़ा बाहर निकाला है,
खुद की स्वच्छता का मैनें खुद ही बीड़ा उठाया है,
एक दिन सड़क पर निकल कर हाय तौबा मचाते हो,
फिर अगले ही दिन मुझे भूल घर लौट जाते हो,
ना आज़माओ मेरे सब्र को कहीं मैं तु्म्हें बहा ना ले जाऊँ,
अभी शांत हूँ मैं ड़रो उस दिन से जब मैं गुस्से से सैलाब ना बन जाऊँ.
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