"राधे तू बड़ी भागिनी कौन तपस्या कीन।
तीन लोक तारन-तरन सो तेरे आधीन।"
वृन्दावन के वृक्ष कौ मरम न जाने कोए।
तीन लोक तारन-तरन सो तेरे आधीन।।"
ब्रज की अधिष्ठात्री देवी श्रीराधा रानी हैं ।यह यहाँ की महारानी है। भगवान कृष्ण भी इनके आधीन है। श्री राधा रानी की भगवान कृष्ण की आत्मा कहा जाता है।
माना जाता है यह कृष्ण जी से बड़ी हैं।इनका जन्म ब्रज केरावल ग्राम में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ब्रह्ममुहूर्त चार बजे हुआ माना जाता है।यह बृषभानु जी और कीर्ति जी को एक कमल के फूल में प्रकट मिली थीं।इनके भाई का नाम श्रीदामा था।यह प्रधान अष्ट सखियों दलन के साथ शोभित होती हैं।कंस के आतंक के कारण बृषभानु जी रावल छोड़कर ब्रह्मावर्त पहाड़ी पर स्थित बरसानआ गये थे।
कहा जाता है कृष्ण जी के जन्म के बाद ही राधा रानी अपने नेत्र खोले थे।भगवान कृष्ण राधा रानी को अपनी शक्ति और आत्मा मानते थे।गोवर्धन लीला में ठाकुर जी ने कहा भी है-
"कछु माखन को बल बढ्यो,कछु गोपन करी सहाए।
श्री राधा जू की कृपा ते मैंने गिरवर लियो ऊठाए।।"
आज भी ब्रज में राधाष्टमी धूमधाम से मनाते हैं।रसिकजन समाज गायन करके बधाई पद गाते हैं।रावल ,बरसाना और वृन्दावन में राधाष्टमी की तैयारी जन्माष्टमी की तरह ही मनाई जाती है।
इसी दिन रसिक शिरोमणि स्वामी हरिदास जी का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है।यह तानसेन और बैजूबावरा के गुरू थे और इन्होंने अपनी संगीत साधना से श्री बाँके बिहारी जी को प्रकट किया था।इस दिन वृन्दावन में विभिन्न झांकियां निकाली जाती हैं और निधिवन में समाज गायन होता है।
आज भी ब्रज में प्रत्येक वृक्ष और दीवार पर राधे-राधे अंकित दिखाई देगा। जैसे ही आप ब्रज में प्रवेश करेंगे तो वहां आपको एक ही शब्द सुनाई देगा वह है राधे-राधे।यहां तक की रिक्शा वाला भी आपको हॉर्न की बजाए राधे राधे कहेगा।राधा शब्द यहां स्वांश स्वांश में समाहित है। हो भी क्यों न क्योंकि यहां सब यही तो माँगते हैं-
"श्री राधे मेरी स्वामिनी,मैं राधे जू को दास।
जन्म-जन्म मोहे दीजियो, श्री वृन्दावन वास।।"
आप सभी को राधाष्टमी की राधे-राधे।।
धन्यवाद
राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'
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