निश्छल प्रेम(1)

निश्छल प्रेम परमात्मा का स्वरूप है,,जो सत्य शाश्वत है।

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 22 Jan, 2021 | 1 min read
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प्रेम सदा से निश्छल-निस्वार्थ रहा।

अमृत बिंदु का प्रति भाग रहा।

बदला जग सारा पर प्रेम-प्राणाधार रहा।

कभी राधा की पायल में, कहीं मीरा की सरगम सा

कहीं कान्हा की मुरली से रसधार सा बहता

अंश परमात्मा का है ये जो न कोई कामना से भरा

न प्रेम बदला है न ही रीत बदली है

बदला हो जमाना चाहें सारा।

न तो प्रेम तुलता है न ही मोल बिकता है।

न ही हारता है,न ही ये जीत की बाजी

प्रेमी की हर खुशी की खातिर जान ही बार दी सारी।

कहानी कुर्बानी की कहते हैं चाहें हीर-राझें हों,

या फिर रहे हों लैला-मजनूँ से आशिक।

ये गंगा सा पावन है तो जमुना सा निर्मल है,

गीता सा समधुर गीत कुरान की आयत है।

इबादत की निशानी है यह खुदा की अद्भुत जुबानी है।

यह है भावों से भरपूर यह समर्पण कहानी है।

धन्यवाद

राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'

radhag764n

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