स्त्री तब और अब

स्त्रियों की दशा का वर्णन

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 31 May, 2020 | 1 min read

स्त्रियों की दिशा और दशा में काफी सुधार हुआ है पर इस उन्नति का ग्राफ मध्यम गति से बढ़ रहा है।इसका मुख्य कारण से पितृसत्तात्मक समाज।आप किसी भी युुुग को देेखिए वहां स्त्री को पुरूष का अनुगाामी बताया है।यह पंक्ति आप लोगों ने बहुत बार सुनी होगी-

'बचपन में एक स्त्री पिता के संरक्षण में,किशोरावस्था में भाई के संरक्षण में,शादी के बाद पति के संरक्षण में और बुढ़ापे में बेटे के संरक्षण में रहती है।'

उपर्युक्त पंक्तियाँ स्त्रियों के समाजिक दबाव को इंगित करती हैं।ऐसा लगता है जैसे स्त्रियों का अपना को स्वतंत्र जीवन नहीं है।अगर उन्हें कुछ करना है तो पिता, भाई,पति या पुत्र से पूछकर करना है।शायद पुरुष इतना ताकतवर है कि उसे किसी के स्पोर्ट की जरूरत ही नहीं है।

दुनिया की आधी आबादी कही जाने वाली औरतें अभी भी अपने अधिकार से वंचित हैं या यूँँ कहें उन्हें अपने अधिकारों से दूर रखा जा रहा है,यह कहना गलत न होगा।

स्त्रियों का सहनशीलता उसका एक प्रकृति प्रदत्त गुण है पर उसके इसी सहनशीलता का फायदा उठाना अनुचित है।स्त्री के गुणों को पुरुषों द्वारा अवगुणों से दबाना कितना सही है।सहनशीलता की भी एक पराकाष्ठा होती है।

पुरूष अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए हमेशा से स्त्रियों को शोषण करता हुआ है जिसे संस्कार और अधिकार का नाम दे दिया।

एक सवाल कई बार कौंधता है क्या पुरूषों को दबाव की जरूरत नहीं होती?क्या पुरूष समाज सिर्फ झूठा दंभ भरता रहेगा।क्यों एक ही समाज में स्त्री और पुरुषों के लिए नियम अलग अलग हैं।

हमें इन प्रश्नों उत्तर ढूंढने से काम नहीं चलाना वरन् हम स्त्रियों को स्वयं अपनी विचारणीय दृष्टिकोण से बाहर निकलना होगा।

धन्यवाद

राधा गुप्ता


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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'

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