भारतीय कालों में भक्ति काल को स्वर्णिम काल कहा गया है। इस काल में मुगलों का शासन था।सभी लोग आडंबर, भेद-भाव ,छुआछूत से ग्रसित थे।इन आडंबरों को दूर करने और आम जनमानस को जागृत करने के लिए शीर्ष के संतोंं-महात्माओं का उदय हुआ।सम्पूर्ण भारतवर्ष में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक भक्ति की लहर दौड़ पड़ी।
भक्ति काल में तुलसीदास, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु, सूरदास, रहीमदास, कबीरदास, रामानंद, रामनुज प्रमुख नाम हैं।इन्होंने अपने दोहे,पद्य और भजन कीर्तन के द्वारा आम जनमानस में भक्ति की अलख जगाई।
इनमें से प्रमुख हैं कबीरदास जी,,इन्होंने उस समय समाज में व्याप्त कुरीतियों,आडंबर और मूर्ति पूजा का पुरजोर खंडन किया।हिंदू-मुस्लिम झगड़ों को रोकने का भरसक प्रयास किया।इन्होंने अपने दोहों द्वारा समाज को एकसूत्र में बांधने की कोशिश की।
आज इनके दोहों से प्रत्येक विद्यार्थी परिचय है।इनके दोहे बहुत ही सरल भाषा में लिखे गए हैं जो आज के परिपेक्ष्य में भी सटीक बैठते हैं।कबीर दास जी के जन्म के साथ उनकी मृत्यु भी रहस्यमयी है।कबीर दास के अनुयायियों को कबीर पंथी कहा जाता है
इनकी मृत्यु मगहर में हुई थी।लोगों के मन में यह भ्रांतियां थीं कि जो व्यक्ति काशी में देह त्यागता है उसे स्वर्ग मिलता है और जो मगहर में देह छोड़ता है उसे नर्क।इस बात की भ्रांति दूर करने के लिए वे अंतिम समय मगहर रहने लगे।कहते हैं इनकी देह त्याग के समय हिंदू मुस्लिम आपस में लड़ने लगे कि कबीर जी का अंतिम संस्कार उनके अनुसार होगा पर जैसे ही दोनों पक्ष कबीर जी के देह के पास गये तो वहाँ सिर्फ़ फूल पड़े थे।
मगहर को आज संतकबीरनगर के नाम से जाना जातख है।वहाँ उनकी समाधि और कब्र दोनों ही बने हैं और लोन धर्मों कज लोग सच्ची श्रद्धा भक्ति से सिर झुकाने आते हैं।इनके अनुयायियों को कबीरपंथी कहा जाता है।
संत कबीर की जयंती पर सभी को बधाई हो।
धन्यवाद
राधा गुप्ता
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