माथे पर सजती है बिंदी तभी मातृभाषा कहलाती हिंदी।
अलंकार से सजी हुई है वस्त्र समास के ओढ़ती है हिंदी।।
सभी भाषाओं का उद्भव सबकी माता कहलाती हिंदी।
बृज,अवधि,बुंदेली,खड़ी,मैथिली में रचती-बसती हिंदी।।
प्रेम,करूणा,ममता,सम्मान से भरी हुई है ये भाषा हिंदी।
हिमालय की शिखर से ऊँची गरिमा से परिपूर्ण ये हिंदी।।
तुलसी के सोरठा सी हिंदी मीरा के पदों के भाव में हिंदी।
कबीर के दोहों में हिंदी,सूरदास के सवैया से रची है हिंदी।।
जयशंकर की कविता में हिंदी, मैथली के लेखन में हिंदी।
वीर रस से भरी हुई है मैथली,सुभद्रा की साहित्यिक हिंदी।।
आम जनमानस में रची हुई है यह ऐतिहासिक प्यारी हिंदी।
दोहे,छंद,मात्रा,सोरठा,चौपाई से अपना प्रभाव दिखाती हिन्दी।।
धन्यवाद
राधा गुप्ता पटवारी 'वृन्दावनी'
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