"क्या करती है दिन भर। पानी भी नहीं ला सकती,यही काम बचा है करने को।"-यह कहकर रवि नशे में डूब गया। बच्चों को भूख से रोता देख कविता पानी का कलशा ले भागी।
ज्यादा उम्र नहीं थी कविता की पर उसके बापू ने पैसे के खातिर अधेड़ उम्र रवि के साथ पंद्रह साल की कविता को ब्याह दिया। सालभर में ही कविता ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। अब रवि नशे का प्रयोग करने लगा। काम धंधा चौपट होने लगा।घर का सामान बिकने लगाकमर में कलशा ले कविता सोचती जा रही थी। गरीबी में मेरे बापू ने एक नशेड़ी से ब्याह दिया। इस नशे में घर का सब सामान बिक गया।अब कहीं मैं और मेरे बच्चे भी…..!तभी एक काँटा कविता के चुभा। कविता ने काँटा निकालकर फेंकते हुए कहा-"नहीं, बस अब और कोई काँटा अपने और बच्चों को चुभने नहीं दूँगी।बच्चों के खातिर स्वावलंबी बनूँगी।"
धन्यवाद
राधा 'वृन्दावनी'
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