ये भारतवर्ष निराला है यह प्राणों से भी प्यारा है।
जगमग होती इसकी ज्योति यह दीप उजियारा है।।
शत्रु आये रण भूमि पर लड़ने को जो आतुर थे।
छक्के छुड़ाए शत्रु के वीर वो लड़ने में चातुर थे।।
न प्राणों का मोह ही था न कोई उनको ममता थी।
देश प्रेम की खातिर मर मिटने के वो क्षमता थी।।
अपनी जान लुटा वीरों ने कीमती आजादी पाई थी।
नव युग का आरंभ हुआ भारत ने ली अंगडाई थी।।
कितनों ने इस आजादी के खातिर अपने ही खोये हैं।
भूखे बच्चे जलते घर उजड़ी माँगे देख कितने रोये हैं।।
मत भूलो आजादी को न ही तुम आपस में बैर करो।
छोड़ों भेदभाव की बातें तुम आपस में आदर करो।।
भारत को न तुम झुकने दो न ही आन-मान घटने दो।
कुछ ऐसा कर गुजरो प्यारे इस देश की शान बढ़ने दो।।
जयहिंद
धन्यवाद
राधा गुप्ता पटवारी
स्वरचित,मौलिक व अप्रकाशित
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