मैं पारदर्शी सा पानी हूँ
किसी की आँखों से छलकता तो
कहीं सैलाब सा उमड़ता पानी हूँ।
रंगीन सपने हैं समाये इन आँखों ने
मैं घुमड़-घुमड़ मेघ में बसा पानी हूँ।
कहीं नालों में सड़ता सा पानी तो
कहीं छम-छम सा बरसता पानी हूँ।
यादों में भर आईं आखों का पानी तो
कभी हँसते-हँसते रुलाता पानी हूँ।
हाँ मैं रंगहीन,गंधहीन,स्वादहीन हूँ
पर अहसासों से जुड़ता देवतुल्य पानी हूँ।।
धन्यवाद
स्वरचित व मौलिक
राधा गुप्ता पटवारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
खूबसूरत रचना
धन्यवाद
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