मीठे इश्क का भी इक अपना खट्टापन है।
लड़ना-झगड़ना फिर मानना-समझनइसमें भी एक मनुहार भरा अपनापन है।
तड़पते-बिछुड़ते हैं मिलने की चाह रखते हैंन दूर जाये कभी महबूब यूँ निगाहों से दूर
हर बात में इकहार इजहार की चाह रखते हैं।
इश्क जज्बातों के समंदर में गोता लगाता है।
मिल जाते हैं अनगिनत सीप इसकी गहराई में
बस एक नायाब जौहरी ही परख पाता है।।
इश्क ना कभी छोटा होता है ना बड़ा होता है।
मिल जाए जिस खुशनसीब को ताउम्र
परवाना बस खुदा की इबादत से जुड़ा होता है।।
धन्यवाद
राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'।
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