"एक लड़को हेतो तो सही रहतो, काम आतो। छोरिन की का है ब्याह हेकै अपने ससुराल चली जावेंगी।"- रामधन ते माँ सुखिया ने कही।"माँ, तीन छोरी है गई हैं। अब चौथीई छोरी न है जाबै। मोरे भाग में छोरी ही छोरी लिखी भई हैं।"- रामधन ने उदास हेते भयी कही।
"जा महंगाई में एक-दो बच्चा ही ठीक हैं यहां तो तीन-तीन है गयीं। ऊपर तै चौथेए की और कह रे हो।"- रामधन की लुगाई सुशीला ने कही।
पर सुशीला की एकऊ न चली और उसने चौथी बार एक छोराए जन्म दियो।
*पच्चीस बरस बाद*
"देख लाला, घर आ जा। तोरे पापा बहुत बीमार हैं। कछु दवा-दारू के लिए पइसन को इंतजाम करतो लइयो।"- मइया सुशीला ने रोते भई कही।
एकलौता छोरो केशव बहाना बनाते भयो बोलो-"माँ! मैं न आ पाऊँगो। ऑफिस में काम जादा है। पैसन को इंतजाम आप कर लियो। काऊ ते उधार ले लियो। मैं जब आऊँगो तब चुकतो कर दूगों।" जे कहके केशव काट दियो।
आज रामधन और सुशीला दोनन की आँख खुल चुकी थी। तभी रामधन की तीनों छोरी अपने-अपने ससुराल ते भागती भई आईं और तन-मन-धन ते अपने पिता की सेवा में जुट पड़ीं। छोरिन की सेवा ते रामधन जल्द भले-चंगे है गये।
रामधन ने तीनों छोरिन के सर पर हाथ रखके खूब आशिर्वाद दियो और सबन की आँखे झलझला उठीं।
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