ब्रज को सावन

ब्रजभाषा में ब्रज को सावन

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 18 Jul, 2020 | 1 min read
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सावन जहाँ मस्त भीज रह्यौ वह बृज धाम निरालो है।हरियाली मद मस्त मगन भयी वह रसराज रसीलो है।झूला झूलत रही राधिका झोटा देवत श्याम सलोनो है।शिव शारद भी शीश झुकावत यह ब्रह्म रास रसीलो है।

नख मुख उपमा कछु कही जाए न,जे ब्रह्म अनोखो है।मंद मगन सुगंध समीर बह रही,मस्त हवा को झोंको है।हरित श्रृंगार किये श्री श्यामा,मनोहर श्याम सजावत है।मनमयूर चित्त बाबरो युगल-दंपति की छवि निरखत है।

अष्ट सखिन के दलन में शोभित प्रिय प्राणनन बारी हैं ।देख ब्रह्म भी भाग मनावत,ये भोरी बृषभानु दुलारी हैं।।नवरंग सुरंग सी साड़ी,मस्तक धरे चंद्रिका राधे भोरी हैं।पट पीतांबर सोहें नवल रंग सौं वो मेरो,बाँके बिहारी हैं।

भीजे अंग सुगंध सों न्यारो, तमाल कदंब छुक आये हैं।घनघन करत घनघोर घटा,कारे बदरा सब घिर आयेहैं।।बढ़त जल जमुना में भारी,प्रेम तरंग उठत बहु घनेरी है।

'वृन्दावनी'जे कहत प्रेम वश,हम राधे कृष्ण की चेरी हैं।।

स्वरचित व मौलिक

धन्यवाद

राधा गुप्ता पटवारी



















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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'

radhag764n

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