'या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमतस्मै नमतस्मै नमो नमः।।'
माँ को हर रूप निराला है। चाहें वह काली रूप हो या दुर्गा रूप हो या फिर ज्वाला रूप।भगवती के सभी रूप पूज्यनीय हैं। पूरे बंगाल में माँ की आराधना पूरे वर्ष धूमधाम से की जाती है पर शारदीय नवरात्र में पूरे बंगाल की शोभा ही निराली होती है।उसमें में भी विशेषकर कोलकाता के दुर्गा पूजा और पंडाल।
शारदीय नवरात्र में पूरे कोलकाता को दुल्हन की तरह सजाया जाता है क्योंकि यह यहाँ का प्रमुख त्यौहार है। पूरा शहर रंग-बिरंगी रोशनी से रातभर जगमगाता रहता है।यहां नवरात्र को दुर्गा पूजो के नाम से संबोधित करते हैं। हर गली, हर मोहल्ले में माँँ दुुर्गा का पंडाल बनाया जाता है।हर पंडाल की अपनी थीम होती है और उसी थीम केे अनुसार माँ की प्रतिमा की स्थापना की जाती है।हर पंडाल दूरे से भिन्न होता है।
यह पंडाल कई-कई फीट लंबे,ऊँचे व चौड़े बनाये जाते हैं।इन पंडालों की तैयारी कई महीने पहले से होने लगती है और माँ की प्रतिमा का निर्माण एक साल पहले से होने लगता है।इन पंडलों की यह विशेषता यह है कि ये सभी एक दूसरे से भिन्न होती है।इनकी थीम सामाजिक मुद्दे,कन्या विकास, जागरूकता लिए होते हैं।आधुनिक थीम के अंतर्गत पद्मवात का पंडाल,बाहुबली पंडाल,क्रूज पंडाल, ऐरो प्लेन पंडाल की थीम आदि तो वहीं ऐतिहासिक व धार्मिक थीम जैसे स्वर्ण मंदिर की थीम,वेलूर मठ की थीम,अजंता-ऐलोर थीम,कोणार्क मंदिर,हवेली थीम आदि शामिल होती हैं ।
इसी तरह हर पंडाल की देवी प्रतिमा की संरचना भी भिन्न होती हैं।कहीं देवी की नृत्य मुद्रा होती है तो कहीं कमल विराजित,कहीं पद्मवाती के रूप में होती है तो कहीं पृथ्वी पर खड़ी।प्रत्येक वर्ष देवी और पंडाल की थीम अलग अलग होती है।यहां हजारों छोटे-बड़े पंडाल बनाये जाते हैं।कई पंडालों का खर्चा बीस-तीस करोड़ तक होता है।पंडाल देखने के लिए खचाखच भीड़ होती है।कई कई बार तो घंटों-घंटों लाइन में लगना पड़ता विजय दशमी वाले दिन माँ की विदाई से पहले उनके साथ सिंदूर खेला होता है।सभी सौभाग्यवती स्त्रियाँ माँ को सिंदूर,फल,वस्त्र व मिठाई अर्पित करती हैं और इसके पश्चात उसी सिंदूर को प्रसाद स्वरूप एक दूसरे की माँग में भरती हैं और गालों पर लगाती हैं।इसी के साथ माँ की नगाड़ा बजाकर नगर भ्रमण कर उनकी विदाई की जाती है और फिर अगले दिन से अगले वर्ष की तैयारी में जुट जाते हैं।यह एक मात्र पर्व नहीं अपितु यहां की आर्थिक व्यवस्था भी इन पंडालों पर टिकी है।इस पर्व से कई परिवार की रोजीरोटी मिलती है।विश्व के बेहतरीन कलाकार आपको यही मिलेंगे।आप वर्ष भर यहां मूर्ति बनने का काम देख सकते हैं।
आप भी कभी कोलकाता की दुर्गा पूजा में शामिल होइए।यह विश्व की अनूठी, निराली,अद्वितीय नवरात्र है।
धन्यवाद
स्वरचित, मौलिक
राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'
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