"ऐ री का भयो ऐसे काय कूँ मौंहड़े लटकाए के बैठी है?"-रामचरन ने अपनी छोरी बबिता ते कही। बबिता उदासी ते बोली-"मेरो तो कल को गणित को इम्तिहान खराब हे गयो है।बड़े मेहनत ते तैयारी करीई पर....!" इत्तो कहते ई बबिता चुप हे गई।
रामचरन अपने रिक्शाए बाहर निकालते भयो बोलो-"मोइए एक समस्या आई गई है।मैं सोच रह्यो हूँ जा रिकाए बेच के आराम ते बैठ जाऊँ।"
बबिता आश्चर्य ते देखते भई रामचरन ते बोली-"बापू!का भयो?ऐसे काए कूँ बोल रह्ये हो?अगर रिक्शाए न चलाए के घर बैठ जाओगे तो रोटी-पानी की व्यवस्था कैसे हैवेगी?
रामचरन कछु सोचते भयो बोलो-"सब है जाएगो।कल मोए एकऊँँ सवारी ना मिली।खाली हाथ लौट आयौ।मोपे न चलेगो जे रिक्शो।"
बबिता समझाते भई अपने पिता ते बोली-"बापू ऐसो न कहो।सब दिना एक जैसे न हैंवे।कल ही तो सवारी ना मिलीं जाते पहले तो कित्ती सवारिए बैठा के उनके जगहा तक छोड़ के आते कै नाए।सब दिना एक जैसे न हैवैं।बापू कछु न कछु तो करनो पड़ेगो।हाथ पे हाथ धरवे ते कछु न हेगो।"
बबिता की बात सुनवे के बाद रामचरन हँसते भयो बोलो-"बबिता तू तो बहुत समझदार है रे। फिर तोऐ का है जावे। जई बात तो मैं तोए समझावे की कोशिश कर रौ। मानौ तेरो कल गणित को पर्चो खराब है गयो तो जा बारे में सोच-सोच के का फायदा। अब जो है गयो, सो है गयो। कल जो चलो गयो वो अब लौट के न आवे बारो। बाके बारे में सोचवें तो कछु फायदो नाए। जा कारण तेरो कल आवे वारो अँग्रेजी को इम्तिहान और खराब है जायेगा। चल उठ, हाथ और मौंह को ढंग ते साफ करिके पढ़िवें कूँ बैठ। देखियो तेरो कल को इम्तिहान अच्छे जावेंगे।"
बबिता को सब समझ आ चुको थो।वह उठी और हाथ और मोंह धोवे के बाद पढ़िवे कूँ बैठ गई।
धन्यवाद
स्वरचित,मौलिक व अप्रकाशित
राधा गुप्ता पटवारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सही कई.....
वाह
वाह
धन्यवाद
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