गिरते हैं चलते हैं
पर फिर सौ-सौ बार गिर-गिर के संभलते हैं।
जिन्दगी है मुश्किल है
पर फिर भी कई बार रो-रो के हँसते हैं।
जीते हैं मरते हैं
फिर सौ-सौ बार निराशाओं में भी आश जगाते हैं।
मुश्किल हैं मंजर है
पर फिर सौ-सौ कठिनाइयों को भी सरलता से नाप जाते हैं।
-वृन्दावनी
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